अब हम अमर भये न मरेंगे।।
तन कारन मिथ्यात दियो तज, क्यों कर देह धरेंगे।।(1)
उपजै मरै कालतें प्रानी, तातै काल हरें गे ।
राग द्वेष जग बंध करत हैं, इनको नाश करेंगे।।(2)
देह विनाशी मैं अविनाशी, भेदज्ञान पकरेंगे।
नासी जासी हम थिरवासी, चोखे हो निखरेंगे ।।(3)
मरे अनन्ती बार बिन समुझै, अब सब दुःख बिसरेंगे।
‘द्यानत’ निपट निकट दो अक्षर, बिन सुमरें सुमरेंगे।।(4)
रचयिता : कविवर द्यानतराय जी
Singer: Amit Ji Indore