आये श्रद्धा में भगवान,
आज मैं धन्य हुआ।
अनुभव में आतमराम,
आज मैं धन्य हुआ ॥टेक॥
तेरी अस्ति मेरी बस्ती, मेरी अस्ति तेरी बस्ती ।
ऐसी करूँ प्रभु की भक्ति, आज लगा दूँ सारी शक्ति ॥
निज में पाया विश्राम, आज मैं धन्य हुआ ॥1॥
सुरपति जिनको करते वन्दन, जो हैं सिद्धों के लघुनन्दन ।
निज स्वभाव के हैं अभिलाषी, मुक्ति पुरी के हैं प्रत्याशी ॥
मिला सुख से भरा गोदाम, आज मैं धन्य हुआ ॥2॥
कण-कण को जी भर-भर देखा, पाया नहीं मैं सुख की रेखा ।
हे जिनवर! जब तुम्हें निहारा, समता रस की बह गई धारा ॥
भव भ्रमण में लगा विराम, आज मैं धन्य हुआ ॥3॥
समकित का संगीत सुहाया, साधन साध्य स्वयं में पाया ।
तुम जैसा भगवंत मिला है, मुक्तिपुरी का पंथ मिला है ॥
शुद्धात्म लिया पहचान, आज मैं धन्य हुआ ॥3॥
वीतरागता की ये मस्ती, नहीं समझना इसको सस्ती ।
ज्ञायक भाव की अद्भुत मस्ती, नहीं समझना इसको सस्ती ॥
मैं भी हूँ सिद्ध समान, आज मैं धन्य हुआ ॥4॥
पं० संजीव जैन, उस्मानपुर