आत्मन्‌! रहो सदा अविकार | Aatman raho sada avikaar

आत्मन्‌! रहो सदा अविकार, पाओ निश्चय ही भव पार॥ टेक॥

अविकारी प्रभु की भक्ति धर, करना तत्त्व विचार।
निज अविकारी तत्त्व निहारो, उपजे नहीं विकार॥ ॥
अविकारी गुरुओं की संगति, अनुशासन अविकार।
तत्त्वोपदेश श्रवण कर करना, वस्तु स्वरूप निर्धार॥ 2॥
भाओ नित वैराग्य भावना, छटे मोह दुखकार।
अन्तर में पुरुषार्थ जगाओ, तप संयम उर धार॥ 3॥
पर से विरत स्वयं में रत हो, समयसार सुखकार।
ध्यावो- ध्यावो उत्तम अवसर,आया मंगलकार ॥ 4॥

Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: स्वरूप-स्मरण