आत्म अनुभव का अवसर मिला | Aatm Anubhav Ka Avsar Mila | Br. Shree Ravindraji 'Aatman'

आत्म अनुभव का अवसर मिला, चूक मत जाना दुर्लभ अहो ।
व्यर्थ बाहर भटकते अरे, बोधि निज में सुलभ ही अहो ।।टेक।।
ज्ञान- आनंदमय आत्मा, तूने अब तक पिछाना नहीं।
झाँको अपने ही अंतर में तुम, प्रभु सी प्रभुता दिखेगी ।।1।।

अन्य कोई सहारा नहीं, सोच कर व्यर्थ न हो दुःखी ।
पूर्ण सामर्थ्यमय आत्मा, स्वयं ही स्वयं को शरण है ।।2।।

जग में राई सा सुख ही नहीं, सोचकर आकुलित तू न हो।
आत्मा स्वयं सुख सिन्धु है, शक्तियाँ अनंत उछलें अहो ।।3।।

मूढ़ पामर हूँ भ्रान्ति तजो, मैं हूँ ज्ञायक प्रतीति करो ।
अपनी प्रभुता का कर अनुभवन, भव्य शिवपथ में आगे बढ़ो ।।4।।

सम्यक् दर्शन सहित ज्ञान हो, सम्यक् चारित्र वैराग्यमय हो ।
होवे संवर सहित निर्जरा, शीघ्र शिवधाम पाओ अहो ।।5।।

रचयिता : बाल ब्रह्मचारी श्री रवीन्द्रजी ‘आत्मन्’
Source : जिन भक्ति सिंधु (page 327)

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