आतम अनुभव आवै जब निज । Aatam Anubhav aave Jab Nij

आतम अनुभव आवै जब निज

(राग गौरी)

आतम अनुभव आवै जब निज, आतम अनुभव आवै ।
और कछू न सुहावे जब निज, आतम अनुभव आवै । । टेक ॥।

जिनआज्ञाअनुसार प्रथम ही, तत्त्व प्रतीति अनावै
वरनादिक रागादिकतैं निज, चिह्न-भिन्न फिर ध्यावै ।। १ ।।
मतिज्ञान फरसादि विषय तजि, आतम सम्मुख धावै ।
नय प्रमान निक्षेप सकल श्रुत, ज्ञानविकल्प नसावै ।। २ ।।
चिदऽहं शुद्धोऽहं इत्यादिक, आपमाहिं बुध आवै ।
तन पै बज्रपात गिरतैं हू, नेकु न चित्त डुलावै ।। ३ ।।
स्वसंवेद आनंद बढ़े अति, वचन कह्यो नहिं जावै ।
देखन जानन चरन तीन विच, इक स्वरूप लखावे ।।४ ।।
चितकर्ता चित कर्मभाव चित, परनति क्रिया कहावै ।
साधक साध्य ध्यान ध्येयादिक, भेद कछू न दिखावै ।। ५ ।।
आत्मप्रदेश अदृष्ट तदपि, रसस्वाद प्रगट दरसावै ।
ज्यों मिश्री दीसत न अंधको, सपरस मिष्ट चखावै || ६ ||
जिन जीवनके, संसृत पारावार पार निकटावै ।
‘भागचन्द’ ते सार अमोलक, परम रतन वर पावै ॥ ७ ॥

रचयिता: कविवर श्री भागचंद जी जैन

Source: आध्यात्मिक भजन संग्रह (प्रकाशक: PTST, जयपुर )