आओ नी आओ नी भविजन… आओ नी आओ नी भविजन
सिद्धक्षेत्र के तले, सिद्धप्रभु से मिलें… निज अनुभव रस पान करें।
आओ नी आओ नी भविजन ॥
मधुवन की पावन वसुधा से…२ मंगल आमन्त्रण आया…२
सिद्धों के संग मिल जाने को…२ भव्यों को है बुलवाया… २
खण्ड अष्टकर्म के बंधन छूटे… २
भव भव से निज अनुभव रस पान करें… ॥१॥
मंगलकारी प्रभुकल्याणक…२ भव्यों के कल्याण स्वरूप…२
जिन दर्शन है उनका सच्चा…२ प्रभु सम जो देखे निज रूप…२
चिरभावी तब मोह पलाय… २
पल भर में निज अनुभव रस पान करें… ॥२॥
यदि दुख से परिमुक्ति चाहो…२ तो श्रामण्य स्वीकार करों…२
इन्द्रिय सुख तो सदा दुखमय… २ अब इनका परिहार करो… २
भव सागर से पार चलो अब… २
क्षण भर में निज अनुभव रस पान करें… ॥३॥
रचयिता - डॉ. विवेक जैन, छिंदवाडा