आदीश्वर स्वामी वंदूँ मैं बारंबार।
धन्य घड़ी प्रभु दर्शन पाए, वंदूँ बारंबार ।।टेक।।
कर्म भूमि की आदि में, मुक्ति मार्ग अविकार।
दर्शायो आनंदमय, कियो परम उपकार ।।1।।
परम शांत मुद्रा अहो, भेदज्ञान दर्शाय।
दिव्यध्वनि सुनि आपकी, विभ्रम सर्व पलाय ।।2।।
भव्य अनेकों तर गए, निज स्वरूप को साध।
इस अशरण संसार में, आपहि तारण हार ।।3।।
मुक्ति मार्ग प्रभु आपका, हमें आज भी प्राप्त।
भेदज्ञानियों से अहो, निज में ही हे आप्त ।।4।।
प्रभुता प्रभुवर आप सम, दीखे अंतर माँहि।
होय परम निर्ग्रंथता, भाव सहज उमगाँहि ।।5।।
Artist: बा. ब्र. श्री रवींद्र जी ‘आत्मन्’