चिन्मात्र स्वरूपो5हं, सहजानन्द रूपोडऊहं।
ज्ञानानन्द रूपोडहं, नित्यानन्द रूपोड्हं || टेक।।
पूर्णानन्दमय ध्रुवधाम, निरूपम शुद्धात्म अहो।
चैतन्य प्रकाशमयी, परमात्म स्वरूपो5हं॥1।।
ध्रुव एक स्वरूप रहे ज्ञाता, नहीं कर्त्ता हो।
ध्रुव ज्ञान का ज्ञेय सहज, अनुभूति स्वरूपोडहं |। 2।।
निर्मम, निर्मोह सदा, रागादिक हों न कदा।
निर्भय निःशल्य, सहज निर्ग्रन्थ स्वरूपो5हं |। 3।।
उछलें जहाँ शक्ति अनंत, ज्ञानमात्र अहो फिर भी।
प्रभुता का ओर न छोर, भगवान स्वरूपो5हं।। 4।।
परिपूर्ण स्वयं में ही, निरपेक्ष सदा पर से।
निज में ही तृप्त रहूँ, स्वयं सिद्ध स्वरूपो5हं।। 5।।
Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: स्वरूप-स्मरण