Mokshmarg prakashak mein aadarniya todarmal ji kehte hai ki prakarti aur pradesh bandh yog ke kaaran hota hai.
Toh jo 13 gunsthan varti arihant hai unke yog vidyamaan hai aur iryapath aasrav bhi hota hai to kya vo prakarti bandh roop hai yaa kisi particular prakarti ka aasrav hota hai
bhale hi ek samay ke liye ho magar kya aisa hota hai?
केवली के के ईर्यापथ आश्रव होता है अर्थात् जिस प्रकार मुनिराज आहार हेतु ईर्या समिति आते हैं और चले जाते हैं, अधिक देर गृहस्थों के मध्य ठहरते नहीं हैं, वैसे ही केवली भगवान के कर्म आते तो हैं परंतु ठहरते नहीं। आके चले जाते हैं।
Are bhaia point yeh hai ki jo karmaan vargana aati hai vo ek samanya karma vargana roop aati h ya kisi specified prakarti wali aati hai aur 1 samay ke bandh ke baad chali jati hai.
बंध का मूल कारण मोहनीय ही है लेकिन योग के (आत्म प्रदेशों के कम्पन्नता) बिना बंध नही होता। सहज निमित्त नैमित्तिक संबंध जानना।
योग से तो मात्र कर्मों का आगमन होता है। फिर उसका ग्रहण ओर विभाजन ये प्रकृति और प्रदेश का काम है। सो आये हुए कर्मों का ग्रहण भी होता है और विभाजन भी। लेकिन कषाय के न होने से स्तिथि और अनुभाग बंध नही होता।
जिन परमाणुओं का ग्रहण होता है उनको अबंध भी कह सकते हैं और एक समयवर्ती बंध भी।
जैसे कि आकाश के एक प्रदेश को अप्रदेशी भी कहा जाता है और सप्रदेशी भी कहा जाता है।
घति कर्मों में तो सभी का बंध निरंतर चलते ही रहता है। यहाँ पर घाति की 47 प्रकृतियों का सद्भाव तो रहा नही और न ही अघाति में आयु की 3 और नाम की 13 प्रकृतियों का। क्योंकि इनका तो अभाव हो ही चुका। सो उनका तो आस्रव होगा ही नहीं।अब जिस आयु का उदय चल रहा है उसका नवीन बंध तो होगा नहीं (समुद्घात संबंधी यथा योग्य जानना)। क्योंकि आगे भव ही नहीं हैं। बाकी सभी का एक साथ होता है या क्रम से इस संबंध में कुछ जानकारी फिलहाल में तो नही है। बाकि अनुमानतया सभी का एक साथ ही होता होगा शायद(किसी और से conform करें)।