ये दिन हम विवेक बिन खोये| Ye din hum vivek bin khoye

पं. श्री भागचन्द्रजी कृत : ( अध्यात्मिक भजन )

ये दिन हम विवेक बिन खोये || टेक||
मोह वारुणी पी अनादितैं, परपदमें चिर मोये ।
सुख करंड, चित पिंड, आपपद, गुन अनंत नहि जोये ||जे०||
होय बहिर्मुख ठानि राग रुष, कर्म बीज बहु बोये ।
तसु फल सुख दुख सामग्री लखि, चितमें हरषे रोये ||जे०||
धवल ध्यान शुचि सलिलपूरतैं, आस्रव मल नहीं धोये ।
परद्रव्यनिकी चाह न रोकी, विविध परिग्रह ढोये || जे० ||
अब निजमें निज जान नियत तहाँ, निज परिनाम समोये ।
यह शिवमारग समरस सागर, भागचन्द्र हित तो ये जि०||

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