What does "संत चित मरालवृन्द" mean?

(सांची तो गंगा यह वीतराग वाणी, 2nd Stranza)

सप्तभंग जहँ तरंग, उछलत सुखदानी |
संत चित मरालवृन्द, रमें नित्य ज्ञानी ||

What does संत चित मरालवृन्द mean in above bhakti? Or better explain the whole stranza.

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सप्त भंग जहँ तरंग, उछलत सुखदानी।
संतचित मरालवृंद, रमें नित्य ज्ञानी।।

सप्तभंग रूप सदैव सुख को प्रदान करने वाली जिनवाणी रूपी तरंगें संत चित्तवाले तथा मराल अर्थात् हंस (flemingo) के समान चित्त अर्थात् मन वाले वृन्द अर्थात् लोगों के हृदयों में सदैव उछलती रहती हैं।

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What does संत mean here? Sadhu?

संत-साधु
चित्त-हृदय
मराल-हंस
वृन्द-समूह

हंसो के समूह के समान है चित्त जिनका ऐसे साधु।
वो इसलिए क्योंकि हंस जिसप्रकार दूध और पानी को अलग कर लेता है उसी प्रकार संत भी स्व और पर को भिन्न भिन्न जानते हैं।
वृन्द शब्द को मुनि के साथ भी जोड़ सकते हैं।

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