क्या चाणक्य जैन मुनि थे? | Was Chanakaya a Jain saint?

ई. पू. चौथी सदी के आसपास अध्यात्मवादियों ने जिस प्रकार अध्यात्म एवं दर्शन के द्वारा समाज के नव-निर्माण में अपना योगदान किया, उसी प्रकार समाज एवं राजनीति-विशारदों ने भी किया। इस दिशा में प्लेटो, अरस्तू एवं आचार्य चाणक्य के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
संपूर्ण जगत यह जानता है कि आचार्य चाणक्य ब्राह्मण थे परंतु चंद्रगुप्त मौर्य को राजा बनाने के बाद उनका उत्तरवर्ती जीवन क्या था ? इससे सभी अनभिज्ञ हैं परंतु उनके उत्तरवर्ती जीवन का उल्लेख जैन ग्रंथो में मिलता है।

आपका काल आचार्य चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन माना गया है, आप ई. स. पूर्व 355 से ई.स. पूर्व 336 में भारत भूमि को पवित्र कर रहे थे।1

अनेक जैन प्रमाणों से सिद्ध होता है कि चाणक्य ने अंत समय में जैन मुनि दीक्षा धारण की थी।

निम्निलखित प्रमाण दृष्टव्य है :-
चाणक्य ने जब जाना, कि उनका लक्ष्य नन्दवंश को जड़मूल से हटाना था, कि जो अब संपूर्ण हो गया है, तब उन्होंने अपने आन्तरिक कषायभावोंको उपशांत कर स्वयं को अध्यात्मके ढ़ाँचे में ढ़ाल दिया । अन्ततः चाणक्य ने अपने 500 शिष्यों सहित भगवती जिनदीक्षा ली व कठोर तपश्चर्या करते हुए पाटलीपुत्र से ‘वनवास’ होते हुए, महाकौञ्चपुर के एक गोकुल नाम के स्थान में ससंघ कायोत्सर्ग-मुद्रा में बैठ गये। 2

चाणक्य ने शीघ्र ही अत्यन्त चतुराई पूर्वक सभी को सुसंगठित कर राजा नन्द को मरवा डाला तथा चन्द्रगुप्त को कुसुमपुर (पाटलिपुत्र) का राजा बनाया। अपना लक्ष्य पूरा कर चाणक्य ने जैन-दीक्षा ले ली। 3

कवि हरिषेण ने चाणक्य कथा के अन्त में लिखा है कि- 'दिव्यक्रौञ्चपुर की पश्चिम दिशा में चाणक्य मुनि की एक निषद्या बनी हुई है,
जहाँ आजकल ( अर्थात् कवि हरिषेण के समय में ) भी साधुजन दर्शनार्थ जाते रहते हैं।" 4

सिरिचन्द कृत कहकोसु (5) एवं नेमिदत्त कृत आराधनाकथाकोष (6) में भी चाणक्य की यही कथा मिलती है ।

कुछ श्वेताम्बर ग्रंथो में भी आचार्य चाणक्य की कथाएं प्रसिद्ध है , जिसमें उन्हें जैन मुनि कहा गया है ,उन ग्रंथों के नाम इस प्रकार हैं :-
आवश्यकसूत्र वृत्ति, आवश्यकनियुक्तिचूर्णि, उत्तराध्ययनसूत्र टीका एवं परिशिष्टपर्व में मी चाणक्य की कथा मिलती है। जिससे उनके जैन मुनि दीक्षा धारण करने के उल्लेख प्राप्त हैं । 7

जैनेतर-साहित्य में चाणक्य के उत्तरवर्ती जीवन के विषय में चर्चा क्यों नहीं की गई है ?

इसका सम्भवतः एक कारण यह भी हो सकता है कि चन्द्रगुप्त के राज्याभिषेक के कुछ वर्षों के बाद ही चाणक्य ने जैन मुनिपद धारण कर लिया था, इसी कारण उन्होंने सम्भवतः उनके उत्तरवर्ती जीवन की उपेक्षा की। इस प्रसंग में सुप्रसिद्ध इतिहासकार राइस डेविड्स का यह कथन पठनीय है :- The Linguistic and Epigraphic evidence so far available con firms in many respects the general reliability of traditions current amongst the Jainas… 8

महाराज चन्द्रगुप्त के अत्यंत अनुरोधवश उन्होंने युवक सम्राट बिन्दुसार का पथ-प्रदर्शन करने के लिए वह विचार स्थगित कर दिया ; किन्तु दो-तीन वर्ष बाद ही वह भी मन्त्रित्य का भार अपने शिष्य राधागुप्त को सौंपकर मुनिदीक्षा लेकर तपश्चरण के लिए चले गये थे। भगवती आराधना आदि अत्यन्त प्राचीन जैन ग्रन्थों में मुनीश्वर चाणक्य की दुर्धर तपस्या और घोर उपसर्ग सहते हुए सल्लेखना पूर्वक देह त्याग करने के वर्णन मिलते हैं। 9

वर्तमान लेखक की “THE JAIN SOURCES OF THE LIFE STORY OF CHANDRAGUPTA AND CHANKYA” और कामता प्रसाद जैन की पुस्तक “तीर्थंकरों का धर्म” पुस्तक द्वारा प्रकाशित ने इस विषय पर विस्तार से विचार किया है और स्पष्ट रूप से स्थापित किया है कि चाणक्य जैन माता-पिता से पैदा हुए थे, जीवन भर आस्था से जैन बने रहे और एक जैन तपस्वी के रूप में अपने दिनों का अंत किया इस पर दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परा दोनों एकमत हैं। 10

आपने ‘अर्थशास्त्र’ नामक अद्भुत लौकिक सिद्धान्तों की रचना की, उस कालमें अध्यात्मविद्या का ज्ञान मौखिक ही होता था लिखित नहीं। ; अतः आपने कोई ग्रंथ की रचना नहीं की; फिर भी जैन इतिहास में वे पूर्वाश्रम में कुटिल राजनीतिज्ञ होने पर भी, ;अंतरंग से इतने अलिप्त थे कि कार्य समाप्त होने पर तुरंत भावलिंगी संत बनकर घोर तपश्चर्या कर समाधि मरणयुक्त आत्म-साधना का सुन्दर सन्मार्ग द्योतित कर सभी जीवों के आदर्श बन गये।

आपको कोटि कोटि वंदन। अस्तु

संदर्भ सूची: -

  1. भगवान महावीर की आचार्य परम्परा प्रकाशक :- दिगम्बर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, पृष्ठ 36
  2. भगवान महावीर की आचार्य परम्परा प्रकाशक. दिगम्बर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ़ पृष्ठ 37
  3. [ हरिषेणाचार्यकृत बृहत्कथाकोष (10वीं सदी) से ] श्लोक क्र. 83 ,84
  4. चाणक्यमुनिकथानकम् ,श्लोक: 85
  5. Muni Sricandra 's KAHA KOSU, Page 143
  6. आराधना कथा कोश भाग -3 पृष्ठ 355
  7. भद्रबाहु - चाणक्य - चंद्रगुप्त कथानक भद्रबाहु एव राजा कल्कि वर्णन | महाकवि रहधू कृत । प्रकाशक : श्री गणेश वर्णी दि०जैन संस्थान नरिया, वाराणसी-5
  8. वही
  9. प्रमुख एतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
    पृष्ठ 56,57
  10. Jain Journal volume, 8 January 1974 ,no 3
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