विषयों से दामन बचाते चलो,
कर्मों के बन्धन छुड़ाते चलो। टेक॥
ये घर तेरा नाही चेतन कोह को भरमाया
इस झूठी दुनिया से पगले काहे को नेह लगाया।
भक्ति में मन को लगाते चलो ॥१॥
आया है जो जायेगा वो, युग युग की ये रीति
सोच समझ ले ओ बावरिया आयु जाये बीती
रिश्ते नाते भुलाते चला ॥२॥
रावण राजा से बलधारी काल बलि से हारे
गया सिकन्दर भी दुनिया से खाली हाथ पसारे
मान को मन से हटाते चलो ॥३॥