विराजै ‘रामायण’ घटमाहिं।
मरमी होय मरम सो जाने, मूरख मानै नाहिं।।टेक।।
आतम ‘राम’ ज्ञान गुन ‘लछमन’, ‘सीता’ सुमति समेत।
शुभोपयोग ‘वानरदल’ मंडित, वर विवेक ‘रण खेत’ ।।१।।
ध्यान ‘धनुष टंकार’ शोर सुनि, गई विषय दिति भाग।
भई भस्म मिथ्यामत ‘लंका’, उठी धारणा ‘आग’ ।।२।।
जरे अज्ञान भाव ‘राक्षसकुल’, लरे निकांछित ‘सूर।
जूझे राग-द्वेष सेनापति, संसै ‘गढ़’ चक चूर।।३।।
बिलखत ‘कुम्भकरण’ भव विभ्रम, पुलकित मन ‘दरयाव।
थकित उदार वीर ‘महिरावण’, ‘सेतुबंध’ सम भाव।।४।।
मूर्छित ‘मंदोदरी’ दुराशा, सजग चरन ‘हनुमान’।
घटी चतुर्गति परणति ‘सेना’, छुटे छपक गुण ‘बान’ ।।५।।
निरखि सकति गुन चक्र सुदर्शन’ उदय ‘विभीषण’ दान।
फिरै ‘कबंध’ मही ‘रावण’ की, प्राण भाव शिरहीन।।६।।
इह विधि सकल साधु घट, अन्तर होय सहज ‘संगाम’।
यह विवहार दृष्टि ‘रामायण’ केवल निश्चय ‘राम’।।७।।
Artist - पं. श्री बनारसीदास जी
निश्चय-व्यवहार अध्यात्म-रामायण का सारांश
जीवात्मारूपी राम अपनी अनुभूति-रूपी सीता से बिछुड़ गया। मिथ्यात्व- रूपी रावण उसे हर ले गया। व्यवहार रूपी लक्ष्मण को साथ लेकर भटकते- भटकते उनकी शास्त्रज्ञान रूपी सुग्रीव से भेंट हुई; परन्तु मिथ्याज्ञान-रूपी विद्याधर साहसगति एकान्तमय मिथ्या शास्त्रज्ञानरूपी सुग्रीव का वेश बनाकर सुग्रीव के घर में बैठा रहा। राम ने मिथ्याज्ञान रूपी साहसगति का नाश किया और शास्त्रज्ञान-रूपी सुग्रीव को साथ लिया। उसने राम को सम्यग्दर्शन- रूपी हनुमान से मिलाया। वह उनकी अनुभूति त्रिया की खवर लेने गया। राम ने उसे अपनी पहचान के लिये चैतन्य-अस्तित्व-रूपी मुद्रिका दी। हनुमान राम की त्रिया अनुभूतिरूपी सीता से मिले और मुद्रिका दी। सीता ने बदले में निराकुलता-रूपी चूड़ामणि राम को देने के लिये दिया, जिससे उनको विश्वास प्राप्त हो जाये। राम ने शास्त्रज्ञान रूपी सुग्रीव, सम्यक्त्वरूपी हनुमान और सम्यग्ज्ञान-रूपी भामण्डल को साथ लेकर अनंतानुवन्धी चतुष्क-रूपी समुद्र को पार करके लंका पर चढ़ाई की, तव मिथ्यात्व-रूपी रावण असंयमरूपी कुंभकर्ण और विषयाभिलाषा-रूपी इन्द्रजीत को साथ लेकर लड़ने को चला। शुभोपयोग-रूपी विभीषण ने बहुत मना किया, फिर भी जब मिथ्यात्वरूपी रावण नहीं माना, तव विभीषण उसको छोड़कर राम से आ मिला। अशुद्धोपयोग- रूपी मन्दोदरी ने आत्मानुभूति-रूपी सीता को बहुत लोभ दिया, पर वह उसका साथ देने को तैयार नहीं हुई। आत्माराम ने मिथ्यात्व-रूपी रावण से भारी युद्ध किया। असंयम-रूपी कुंभकर्ण और विषयाभिलाषा-रूपी इन्द्रजीत बंदी हो गये। मिथ्यात्वरूपी रावण का नाश हुआ। राम- हनुमान, सुग्रीव, विभीषण तथा भामण्डल के साथ जाकर अपनी आत्मानुभूति-रूपी त्रिया से गले मिलकर सुखसागर में निमग्न हो गये।
सारांश source - अध्यात्म योगी राम, श्री बाबूलाल जैन