वीरनाथ का मंगल शासन, जग में नित जयवंत रहे।
स्वानुभूतिमय श्री जिनशासन, जग में नित जयवंत रहे ॥ टेक ||
श्री जिनशासन के आधार, भव सागर से तारणहार।
वीतराग सर्वज्ञ जिनेश्वर, जग में नित जयवंत रहें ॥१॥
वस्तु स्वरूप दिखावन हार, हेयाहेय बतावनहार ।
नित्य बोधिनी माँ जिनवाणी, जग में निज जयवंत रहे ॥२॥
मुक्तिमार्ग विस्तारनहार, धर्ममूर्ति जीवन अविकार ।
रत्नत्रय धारक मुनिराज, जग में नित जयवंत रहें ॥३॥
चैत्य चैत्यालय मंगलकार, धर्म संस्कृति के आधार ।
सहज शान्तिमय धर्मतीर्थ सब, जग में नित जयवंत रहें ।।४।।
देव गुरु की मंगल अर्चा, आनन्दमयी धर्म की चर्चा ।
स्याद्वादमय ध्वजा हमारी, जग में नित जयवंत रहे ॥५॥
अष्ट अंगमय सम्यग्दर्शन, अनेकान्तमय जीवन दर्शन।
सहज अहिंसामयी आचरण, जग में नित जयवन्त रहे ॥६॥
रहें सहज ही ज्ञातादृष्टा, हो विवेकमय निर्मल चेष्टा।
वीतराग-विज्ञान परिणति, जग में नित जयवंत रहें ।।७।।
तत्त्वज्ञान को सब ही पावें, मुक्तिमार्ग सब ही प्रगटावें ।
सुखी रहें सब जीव भावना, जग में नित जयवन्त रहे ॥८॥
जिनशासन है प्राण हमारा, मंगलोत्तम शरण सहारा।
नमन सहज अविकारी सुखमय, जग में नित जयवन्त रहे ॥९॥
सेवें जिनशासन सुखकारी, शान बढ़ावें मंगलकारी।
सत्यपन्थ निर्ग्रन्थ दिगम्बर, जग में नित जयवन्त रहे ॥१०॥
रचयिता: - ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Singer - @Asmita_Jain