वीर प्रार्थना। Veer Prarthna। वीर जिन ऐसा दो वरदान । Veer Jin Aisa do vardan

वीर जिन ऐसा दो वरदान

हृदय शुद्ध हो बुद्धि विमल हो निर्मल होवे ज्ञान,
द्वेष, क्लेश, भय, लोभ क्षोभ नश जाय कपट अभिमान ।।

वीर जिन…

रंक राय बलहीन बली अरि मित्र निधन धनवान
भेद भाव टुक रहे न सम सब को एक समान ।।

वीर जिन…

रोगी शोकी, दुखित भुखित को देख न उपजे ग्लान
करूं दूर दुःख मैं उन सबका, हर्ष हृदय में ठान ।।

वीर जिन…

सेवा धर्म होय व्रत मेरा दान प्रेम रस दान
करूं विश्व भर की मैं सेवा कर न्योछावर प्रान ।।

वीर जिन …

दूर होय अज्ञान अंधेरा उदय देख रवि ज्ञान
ज्योति प्रेम जग चहुं दिशि फैले धरें आपका ध्यान ।।

वीर जिन ऐसा दो वरदान

Source: आचार्य श्री सूर्यसागर जी प्रणीत एवं संग्रहीत
" आत्मबोध मार्तंड जी " से साभार

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