वन्दों अद्भुत चन्द्रवीर जिन | Vandon adbhut chandraveer jin

वन्दों अद्भुत चन्द्रवीर जिन, भविचकोर चित हारी।
चिदानन्द अंबुधि अब उछर्यो भव तप नाशन हारी ॥ टेक. ॥

सिद्धारथ नृप कुल नभ मण्डल, खण्डन भ्रम-तम भारी ।
परमानन्द जलधि विस्तारन, पाप ताप छय कारी ॥ १ ॥

उदित निरन्तर त्रिभुवन अन्तर, कीरत किरन पसारी।
दोष मलंक कलंक अखकि, मोह राहु निरवारी ॥ २ ॥

कर्मावरण पयोध अरोधित, बोधित शिव मगचारी।
गणधरादि मुनि उड्गन सेवत, नित पूनम तिथि धारी ॥३॥

अखिल अलोकाकाश उल्लंघन, जासु ज्ञान उजयारी।
‘दौलत’ तनसा कुमुदिनिमोदन, ज्यों चरम जगतारी ॥४॥

रचयिता:- पं. दौलतराम जी

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