तुम्हारी मूरत पे | Tumhari murat pe

तुम्हारी मूरत पे हमने देखा …

तुम्हारी मूरत पे हमने देखा, गजब की समता झलक रही है।
तुम्हारे अन्तर की रश्मियों से, अनन्त सृष्टि झलक रही है ॥ टेक ॥

हजारों भानुओं की प्रभा भी, शर्म से मस्तक झुका रही है।
तुम्हें विलोकन को इन्द्र तरसे, नव निधियाँ छटपटा रही हैं ॥1 ॥

अनन्त गरिमा है उनकी हमको, मिले नहीं जग में कोई ऐसा ।
पुण्य पाप का ना होवे कीचड़, दिव्य ध्वनि अब बरस रही है ॥2 ॥

लाख चौरासी में आना जाना, नहीं मिली एक समय की फुरसत ।
अजर अमर पद पायेंगे हम सब, गजब दामिनी दमक रही हैं ॥3 ॥

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