जीव को अनुकूल और प्रतिकूल संयोगों का योग वेदनीय कर्म के उदय से कहने में आता है किन्तु वेदनीय कर्म तो पूर्णतः जीव विपाकी प्रकृति है तो जो बाहर के संयोग हैं उनको जीव के साथ लाने में कौन निमित्त है? दृष्टांत:- भरत चक्रवर्ती को तीर्थंकर का समागम मिला ये हम साता लेंगे या असाता क्योंकि अगर संयोग की तरफ से देखें तो साता और भरत जी की उस समय की स्थिति को देखें तो असाता । तो इसके पीछे क्या वास्तविक कारण हैं ?
मोहनीय का जैसा उदय हो संयोग वैसा लगने लगता है । जिसके लिए टोडरमल जी ने वस्त्र का उदाहरण दिया है।
मोहनीय का निमित्त पाकर साता असाता रूप पर संयोग में बुद्धि होना वह वेदनीय का कार्य है।
संक्षिप्त में कहा जाए तो जो वेदन करावे उसका नाम वेदनीय।
संयोगों की प्राप्ति नो कर्म के उदय से होती है।
सार:- नो कर्म के उदय से मोहनीय का निमित्त पाकर संयोगों में सात असाता रूप वेदन का होना वेदनीय है।
परन्तु वेदनीय जीव विपाकी प्रकृति है , पुद्गल विपाकी नहीं। उससे संयोग की प्राप्ति नहीं होती। संदर्भ ग्रंथ:- गोम्मटसार कर्मकांड भाग-१, आ. ब्र.कल्पना दीदी
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My opinion is that “Sata and Asata are not related to Sanyog, it is related to Jeev, so it is Jeev Vipaki. It means that we can not say the Uday of sata or asata based on seeing sanyog. However, there is Upchar of sata or asata (punya or paap) based on the sanyogi padarth. Further, it is coincidence that many sanyogi padarth are related to Sata only, many sanyogi padarth are related to Asata only and many sanyogi padarth are related to both.”
I totally agree with you but I want to know which karmic body is reponsible for the outer objects(sanyog)?
Here is the गाथा-14 from gommatsar ji, as well as it’s details by Kalpana didi
After seeing the works of all the karmas individually, i can say that none of them is responsible. Their boundary seems to be the body.
इसका थोड़ा स्पष्टीकरण भी अपेक्षित है।
इस तथ्य का आधार क्या है? क्योंकि अघाति कर्म के उदय से संयोग मिलते हैं, ऐसा कहा जाता है |