साधु तथा मुनि में क्या अंतर है?

मोक्ष के कारण जीवों को 9 भेदो में मुनि तथा साधु को लिया हैं। What’s the difference?

Reference: श्री भावदीपिका ग्रन्थ (Page - 33) - औदयिक भाव अधिकार में दूसरा मिथ्यात्व भाव अंतराधिकार

Question raised in JinSwara Daily Online Swadhyay Series.

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अभी तक तो ऐसा कोई अंतर पढ़ने में नही आया। लेकिन फिर भी साधु कहने पर यहाँ मात्र साधु परमेष्ठी को ग्रहण किया होगा। और मुनि में तीनों का सामान्य से ग्रहण ।
लेकिन प्रश्न वापस वही खड़ा होता है कि जब अलग अलग ले ही लिए थे फिर मुनि शब्द अलग से क्यों डाला?
शायद ऐसा हो सकता है कि शाब्दिक अर्थ के आधार पर साधु का अर्थ अच्छा पुरुष / साधु स्वभावी / भद्र पुरुष ग्रहण किया हो। जिसके अंतर्गत 4,5 गुणस्थानवर्ती जीव आ जाएंगे। और वे जीव भी आ जाएंगे जो मोक्ष मार्ग पर अग्रसर हैं।
बाकी तो कुछ विशेष लगता नही है।

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But vahan par shravak ko bhi alag se liya hai.

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श्रावक में या तो वहाँ 5 वे गुणस्थान वर्ती को लिया होगा या फिर 4 गुणस्थानवर्ती को। इस अपेक्षा किसी एक को साधु पुरुष में ग्रहण कर सकते हैं।
और जो मोक्षमार्ग पर अग्रसर हैं उनको तो साधु पुरुष में ले ही सकते हैं जिसमे न तो 4 गुणस्थानवर्ती आते हैं और न ही 5 वे गुणस्थानवर्ती। अतः इस अपेक्षा भी अर्थ निकल जा सकता है।

Yadi hum sadhu ki vyakhya se jaaye toh ve toh vah hote hai jo keval nij aatma ke dhyan mein leen rehte hai jabki muni issi ka dusra roop ho sakta hai, jo ki na acharya ho nahi upadhyay ki padvi ho aur nahi keval Aatma mein leen rehne ka prayatna karte ho. Mane ek rup se karya toh sabhi karte hai(Sangh ko bhi dekhte hai, padhte aur padhate bhi hai aur saath hi aatma ka dhyan bhi kare) parantu Aupcharikta se unhe ek bhi vishesh naam nahi diya gaya ho.
Yeh arth ho sakta hai kaaran kramanusaar muni ko Saadhu ke peeche rakha gaya hai.

लेकिन संघ में 3 पद के अलावा और कोई पद होता ही नही है।
फिर मुनि को इन सभी से अलग कैसे रखा जा सकता है?

I searched for these words in Jinendra siddhant kosh and found this.

muni
Page No. 313

sadhu
Page No. 403

names

So, this is quite confusing.

Here are some more links: Sadhu

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I guess 2nd definition should be worth it.
Avadhigyan can be possessed by the ones who are not Saadhu but Manah paryay gyan can be possessed only by Sadhu. So this can be one such difference.

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That’s a very good point. By the way, how did you derived it from above definition? I can’t find anything similar written in screenshot above.

I had heard it while hearing some pravachan, but sorry I don’t know any other source at present @Sowmay . If I get it again I’ll surely let you know.
No derivation from the above definition. :sweat_smile: Just an added point as I recollected it. Still rechecking it or rectifying if any mistake is always good :slight_smile:

साधु/मुनि के अनेक जाति से भेद हैं -

  1. साधु
  2. द्रव्यलिंगी-भावलिंगी
  3. आचार्य-उपाध्याय-साधु
  4. ऋषि-मुनि-यति-अनगार
  5. पुलाक-बकुश-कुशील-निर्ग्रन्थ-स्नातक
  6. सामायिक-छेदोपस्थापना-परिहारविशुद्धि-सूक्ष्मसाम्पराय-यथाख्यात चारित्र के पालक
  7. संयम-श्रुत-प्रतिसेवना-तीर्थ-लिंग-लेश्या-उपपादस्थान
  8. मूलगुण पालनकर्ता, मूलगुण सातिचार पालनकर्ता, उत्तरगुण पालनकर्ता एवं उत्तरगुण सातिचार पालनकर्ता
  9. 1 पूर्व/1 अंग से 12 अंग ज्ञानी
  10. असंख्यात गुण निर्जरा की अपेक्षा से विरत-अनन्तवियोजक-दर्शनमोहक्षपक-उपशमक-उपशान्तमोह-क्षपक-क्षीणमोह
  11. 3 कम 9 करोड़ की अपेक्षा - 6ठे से 14वे तक
  12. 3 गुप्ति पालक
  13. समिति पालक
  14. घर्म पालक
  15. अनुप्रेक्षा पालक
  16. परिषहजय पालक

भाइयों और बहनों! भेदों की कोई कमी नहीं है। बस घटित करने की बात है।

साधु - साधना करने वाला
मुनि - मनन करने वाला

अब, सप्रसंग स्याद्वाद लगाकर स्वतः ही निर्णय किया जा सकता है। कभी ‘मुनि’ पदकी प्रधानता से वर्णन मिल जायेगा जैसे -
muni

कभी ‘साधु’ की मुख्यता से - णमो लोए सव्व साहुणम्

कभी ‘अनगार’ की मुख्यता से - अगार्यनगार्यश्च

कभी ‘महाव्रती’ की मुख्यता से - देशसर्वतोSणुमहती

कभी ‘निर्ग्रन्थ’ की मुख्यता से - पुलाकादि 5

कभी ‘तपस्वी’ की मुख्यता से - आप्तागम-तपोभृतां

कभी ‘गुरु’ की मुख्यता से - परम गुरु बरसत ज्ञान…

इत्यादि।

(I sincerely thank you for the question.)

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साधु सामान्य का लक्षण

मू.आ./५१२
**णिव्वाणसाधए जोगे सदा जुंजंति साधवो। **
समा सव्वेसु भूदेसु तम्हा ते सव्वसाधवो।५१२।
=मोक्ष की प्राप्ति कराने वाले मूलगुणादिक तपश्चरणों को जो साधु सर्वकाल अपने आत्मा से जोड़े और सर्व जीवों में समभाव को प्राप्त हों इसलिए वे सर्वसाधु कहलाते हैं।५१२।

स.सि./९/२४/४४२/१० चिरप्रव्रजित: साधु:।
= [तपस्वी शैक्षादि में भेद दर्शाते हुए] जो चिरकाल से प्रव्रजित होता है उसे साधु कहते हैं।(रा.वा./९/२४/११/६२३/२४); (चा.सा./१५१/४)।

द्र.सं./मू./५४/२२१
**दंसणणाणसमग्गं मग्गं मोक्खस्स जो हु चारित्तं। **
साधयदि णिच्चसुद्धं साहू स मुणी णमो तस्स।५४।

=जो दर्शन और ज्ञान से पूर्ण मोक्ष के मार्गभूत सदाशुद्ध चारित्र को प्रकटरूप से साधते हैं वे मुनि साधु परमेष्ठी हैं। उनको मेरा नमस्कार हो।५४। (पं.ध./उ./६६७)।

क्रियाकलाप/सामायिक दण्डक की टी./३/१/५/१४३
ये व्याख्यायन्ति न शास्त्रं न ददाति दीक्षादिकं च शिष्याणाम् । कर्मोन्मूलनशक्ता ध्यानरतास्तेऽत्र साधवो ज्ञेया:।५।

=जो न शास्त्रों की व्याख्या करते हैं और न शिष्यों को दीक्षादि देते हैं। कर्मों के उन्मूलन करने को समर्थ ऐसे ध्यान में जो रत रहते हैं वे साधु जानने चाहिए। (पं.ध./उ./६७०)।

प्र.सा./त.प्र./२०३
विरतिप्रवृत्तिसमानात्मरूपश्रामण्यत्वात् श्रमणम् ।
=विरति की प्रवृत्ति के समान ऐसे श्रामण्यपने के कारण श्रमण हैं।

पं.ध./उ./६७१
वैराग्यस्य परां काष्ठामधिरूढोऽधिकप्रभ:।
** दिगम्बरो यथाजातरूपधारी दयापर:।६७१।**

=वैराग्य की पराकाष्ठा को प्राप्त होकर प्रभावशाली दिगम्बर यथाजात रूप को धारण करने वाले तथा दयापरायण ऐसे साधु होते हैं।

साधु के अपर नाम

देखें - अनगार -[श्रमण, संयत, ऋषि, मुनि, साधु, वीतराग, अनगार, भदन्त, दान्त व यति उसके नाम हैं।]

गाथा संख्या ८८६ समणोत्ति संजदोत्ति य रिसिमुणिसाधुत्ति वोदवरागो त्ति। णामाणि सुविहिदाणं अणगार भदंत दंतोत्ति ।।८८६।।

= उत्तम चारित्रवाले मुनियों के ये नाम हैं - श्रमण, संयत, ऋषि, मुनि, साधु, वीतराग, अनगार, भदंत, दंत व यति।

श्रमण (http://jainkosh.org/wiki/श्रमण)-श्रमण को यति मुनि व अनगार भी कहते हैं।

इससे प्रतीत होता है कि दोनों मे कोई विशेष अंतर नहीं है।

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आपकी मेहनत अत्यन्त सराहनीय है, किन्तु प्रश्न को ध्यान में रखकर निष्कर्ष दें।

@Sayyam ji… एक बार पुनः मेरे समस्त उत्तरों पर दृष्टिपात करें(प्रस्तुत प्रश्न से संबंधित)। हो सकता है मैंने प्रश्न को ध्यान में रख कर ही निष्कर्ष दिया हो।

भाई! समानताएँ तो सब को समझ में आ ही रही हैं, और आपके विश्लेषण से अधिक स्पष्ट भी हैं, किन्तु इस प्रश्न के उत्तर में सस्पष्ट अन्तरों को भी वृहद रूप से सर्व-प्रकार से स्पष्ट करना चाहिए।

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Jyadatar sabhi me sadhu=muni hi meaning paya Gaya hai. Isme diferentiat aise b Kiya ja skta hai bhavlingi muni ko sadhu bataye or dravyalingi ko muni, samyakdrasti muniraj ko sadhu bataye or mithyadrashti jo 28 mulgun ko follow krte hai use muni.
Ab muni ko sadhu se km kyo bataya vo define krte he. Namokar mntra me apn jinko namaskar krte he unme sbhi bhavlingi muniraj cover krte hai, kyoki vha namoloasavvasahunam likha hai. Sahu yani sadhu. And bhavdipika k jis topic pr bat chal rhi hai vaha kramse dekhe to muni ko sadhu k bad likha Gaya hai