तोरण द्वार सजे हैं हाथों, लिए कलश सुंदर कनक के ।
जब मुनिवर का हो पढ़गाहन, भाग्य खुलेंगे हम भक्तन के।।
वे अतिथि न कर सकते हैं, हम आमंत्रण उनका जाकर।
हो भूपति उनके परिजन भी देखें बस वे आश लगा कर ।।
कई सूरज ढलते जब उगते एक दिवस श्री नग्न दिवाकर ।
हो उत्साही जोर शोर से करने लगते जन पढ़गाहन ।।
हो पढ़गाहन यदि मिल जाए जो मन ठानी योग्य विधि तो।
उच्चासन पर उन्हें बैठाएं, पादकमल का प्रक्षालन हो ।।
पूजन श्री मुनि की करते हों वंदन बारम्बार करे हम ।
मन वच काया शुद्धि हो अरु भोग नीर भी होवे प्रासुक।।
नवधा भक्ति हों फिर करते मुद्रा छोड़ अंजुली धारण।
हो आहार विधि पूर्वक फिर, दे आहार हुआ मैं पावन।।
जो मुनिवर को दे आहार न यश लालच अभिमान पूर्वक।
भोगभूमि में जन्म होय निज भी सकता मुनिव्रत धारण।।