राजुल नेमीनाथ वैराग्य संवाद

कौन दिशा मे नेमी चले हैं राजुलिया —2
रोके रे रोको, कोई पूछो रे पूछो
कहां मौन चले… मौन चले।। टेक।।

(राजुल नेमीकुमार का संवाद)

ओ नेमी तुम कह तो रहे थे, राजमति तेरी संगनी।
साथी नहीं कोई द्रव्य किसी का तूं कैसे मेरी संगनी।।
पिछले जनम के नौ भव साथी —2
प्रीत न मोसे हटाओ रे…
मुक्ति का पथ काहे भावे न राजुलिया।।1।।

फिर काहे थे व्याह को राजी, काहे बाराती लाए थे।
राग में थे तब अब हैं वैरागी कैसे तुझे समझाएं रे।।
समझाने की बात करो न —2
लौट के आओ गिरनार से…
अब हम चले है मोक्ष मार्ग की डगरिया।।2।।

तीर्थंकर तुम चरम देह हो, मुक्ति पुरी को जाओगे।
मैं भी साथी बन के चलूंगी, दीक्षा अंगीकार के।।
पंथ नहीं है राग का राजुल—2
पहले मोह नशाओ रे…
छूटे कैसे मोह कैसे धारू में वैरागीया।।3।।

नेमीकुवर अब बन गए जिनवर, अरहन्त पद को पाय के।
मैं भी चली अब समवशरण में , अर्जिका पद धारने।।
नेमीश्वर गए मोक्ष महल में—2
राजुल स्वर्ग मंझार रे…
हम भी चले नेमीनाथ की डगरिया।।4।।

रोको न रोको कोई पूछो न पूछो
वे तो मोक्ष गए… मोक्ष गए।।