अनुभव की हिमगिरी से
बहती है ज्ञान धारा
अनुभव की हिमगिरी से
बहती है ज्ञान धारा
अनुभव की हिमगिरी से
बहती है ज्ञान धारा
अनुभव की हिमगिरी से
बहती है ज्ञान धारा
मिला एक ही प्रयोजन
मिला एक ही प्रयोजन
चारों ही वेद द्वारा
अनुभव की हिमगिरी से
बहती है ज्ञान धारा
अनुभव की हिम गिरी से
प्रथमानुयोग हमको शुभ अशुभ फल बताए
प्रथमानुयोग हमको शुभ अशुभ फल बताए
सब पाप से छुड़ाकर निज धर्म में लगाए
जग की विचित्रता को
जग की विचित्रता को
हमने भी अब विचारा
अनुभव की हिमगिरी से बहती है ज्ञानधारा
अनुभव की हिमगिरी से
करुणानुयोग शैली परिणाम को बताए
करुणानुयोग शैली परिणाम को बताए
विधि के विधान की विधि विधि पूर्वक बताए
सर्वज्ञ ने जो देखा
सर्वज्ञ ने जो देखा
बस ज़्यों का त्यों उचारा
अनुभव की हिमगिरी से बहती है ज्ञान धारा
अनुभव की हिमगिरी से
चरणानुयोग धारा चलना हमें सिखाती
चरणानुयोग धारा चलना हमें सिखाती
निश्चय स्वरूप पूर्वक उपचार को बताती
आवागमन हमें अब
आवागमन हमें अब
नहीं चाहिए दोबारा
अनुभव की हिमगिरी से बहती है ज्ञान धारा
अनुभव की हिमगिरी
द्रव्यानुयोग दृष्टि शुद्धात्म की कराए
गुण द्रव्य और पर्यय का भेद भी विलाए
ध्रुवता कभी ना मरती पर्यय अमर ना होवे
अस्तित्व गुण से चेतन जीवत्व नाही खोवै
हो द्रव्य दृष्टि हो जाए द्रव्य
हो द्रव्य दृष्टि हो जाए द्रव्य
परमार्थ का सहारा
अनुभव की हिमगिरी से बहती है ज्ञान धारा
अनुभव की हिमगिरी से बहती है ज्ञान धारा
अनुभव की हिमगिरी से बहती है ज्ञान धारा
मिला एक ही प्रयोजन
मिला एक ही प्रयोजन
चारों ही वेद द्वारा
अनुभव की हिमगिरी से बहती है ज्ञान धारा
अनुभव की हिम से बहती है ज्ञान धारा
अनुभव की हिमगिरी से
लेखक: संजीव जी उस्मानपुर, दिल्ली