तेरी ज्ञान स्वरूपी आतम को, दुर्गति में न जाना पड़े, सुनो चेतन…
जिसने मायाचार किया, गति तिर्यंच में जन्म लिया।
लट, चिवटी, भौरा और हाथी, जंगल का भी शेर हुआ।
अब गाय-बैल के दुःख से डरो, दुर्गति में न जाना पड़े, सुनो चेतन…
नरक गति जो जाता है, जाते ही दुःख पाता है।
छेदन-भेदन, ताडन-तापन, भूख-प्यास चिल्लाता है।
अब बेतरणी के दुःख से डरो, दुर्गति में न जाना पड़े, सुनो चेतन…
नरगति का अब हाल सुनो, जन्म समय का दुःख है घनो।
बालापन अज्ञान अवस्था, तरुण समय में कछु न बनो।
अब अंत समय के दुःख से डरो, दुर्गति में न जाना पड़े, सुनो चेतन…
नर होकर कछु पुण्य किया, सुरगति में जब जन्म लिया।
विषय भोग में लीन होय कर, आतम का नहीं ज्ञान किया।
अब मरण समय के दुःख से डरो, दुर्गति में न जाना पड़े, सुनो चेतन…
अब तो भैया चेतो रे, काहे बनो अज्ञानी रे।
ज्ञान-ध्यान में लीन होय कर, मुक्तिपूरी को पहुँचों रे।
नरभव का है सार यही, दुर्गति में ना जाना पड़े, सुनो चेतन…