जाना नहीं निज आत्मा, ज्ञानी हुए तो क्यों हुए

जाना नहीं निज आत्मा, ज्ञानी हुए तो क्यों हुए |
ध्याया नहीं निज आत्मा, ध्यानी हुए तो क्या हुए ?॥१॥

श्रुत सिद्धान्त पढ़ लिए, शास्त्रवान बन गए ।
आतम रहा बहिरात्मा, पण्डित हुए तो क्या हुऐ? जाना…॥

पंच महाव्रत आदरे घोर तपस्या भी करे ।
मन की कथायें ना गई, साधु हुए तो क्या हुए? जाना…॥

माला के दाने फेरते, मनुवा फिरे बाजार में ।
मनका न मन से फेरते, जपिया हुए तो क्या हुए? जाना….॥

गा के बजा के नाच के, पूजन भजन सदा किए ।
भगवन हृदय में जा बसे पुजारी हुए तो क्या हुए ? जाना…॥

करते न जिनवर दर्श को, खाते सदा अभक्ष्य को ।
दिल में जरा दया नहीं, मानव हुए तो क्या हुए ? जाना …॥

मान बड़ाई कारणे, द्रव्य हजारों खचते ।
घर के लोग भूखन मरे, दानी हुए तो क्या हुए? जाना…॥

रात्रि न भोजन त्यागते, पानी न पीते छान के ।
छोड़े नहीं दुव्यंसन को, जैनी हुए तो क्या हुऐ ?जाना…"॥

औगुण पराए हेरते, दृष्टि न अन्तर फेरते ।
‘शिवराम’ एक ही नाम के शायर हुए तो क्या हुए? जाना.॥

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सुंदर काव्य है कहां से उद्धृत है अगर ज्ञात हो तो बताइए।

6th line m " मन की कषायें" hona chahiye na i think