मनःपर्यय दर्शन क्यों नहीं है?

दर्शन गुण मतलब ज्ञान से पहले सामान्य प्रतिभास।
दर्शन गुण की ४ पर्याय है , चक्षु , अचक्षु , अवधि , केवल।
तो क्या मनःपर्यय ज्ञान से पहले सामान्य प्रतिभास नहीं होता? मनःपर्यय दर्शन क्यों नहीं है ?

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आगमानुसार मनःपर्यय ज्ञान मतिज्ञान पूर्वक ही होता है इसलिए उससे पहले कोई दर्शन नहीं होता।

अवधि ज्ञान भी मति ज्ञान सहित ही होता है , परन्तु अवधि दर्शन है तो मनःपर्यय दर्शन क्यों नहीं ?

राजवार्तिक/6/10 वार्तिक/पृष्ठ/पंक्ति

=प्रश्न–जिस प्रकार अवधिज्ञान दर्शनपूर्वक होता है, उसी प्रकार मन:पर्ययज्ञान को भी दर्शनपूर्वक होना चाहिए ? उत्तर

  1. ऐसा नहीं है, क्योंकि, तहाँ कारण का अभाव है। मन:पर्यय दर्शनावरण नहीं है, क्योंकि चक्षु आदि चार ही दर्शनावरणों का उपदेश उपलब्ध है। और उसके अभाव के कारण उसके क्षयोपशम का भी अभाव है, और उसके अभाव में तन्निमित्तक मन:पर्ययदर्शनोपयोग का भी अभाव है।

  2. मन:पर्ययज्ञान अवधिज्ञान की तरह स्वमुख से विषयों को नहीं जानता, किंतु परकीय मनप्रणाली से जानता है। अत: जिस प्रकार मन अतीत व अनागत अर्थों का विचार चिंतन तो करता है पर देखता नहीं, उसी तरह मन:पर्ययज्ञानी भी भूत और भविष्यत् को जानता तो है, पर देखता नहीं। वह वर्तमान भी मन को विषयविशेषाकार से जानता है, अत: सामान्यावलोकन पूर्वक प्रवृत्ति न होने से मन:पर्यय दर्शन नहीं बनता।

प्रश्न –मन:पर्यय दर्शन को भिन्नरूप से कहना चाहिए

? उत्तर –3. नहीं, क्योंकि, मन:पर्ययज्ञान मतिज्ञानपूर्वक होता है, इसलिए मन:पर्यय दर्शन नहीं होता।

द्रव्यसंग्रह टीका/44/188/6

यहाँ श्रुतज्ञान को उत्पन्न करने वाला जो अवग्रह और मन:पर्ययज्ञान को उत्पन्न करने वाला ईहारूप मतिज्ञान कहा है; वह मतिज्ञान भी दर्शनपूर्वक होता है इसलिए वह मतिज्ञान भी उपचार से दर्शन कहलाता है। इस कारण श्रुतज्ञान और मन:पर्ययज्ञान इन दोनों को भी दर्शनपूर्वक जानना चाहिए।

सरलार्थ :-

जैसे कोई मुनिराज जी को किसीने प्रश्न पूछा उस समय उनको मति श्रुत ज्ञान है जब उन्होंने मनः पर्यय ज्ञान में उपयोग लगाया तब सर्व प्रथम उनको जो ज्ञेयान्तर अर्थ हुआ इसे कहेंगे अवग्रह जो कि मतिज्ञान का भेद है बाद मे उनको किसी जीव के मन की बात जानने की इच्छा हुई इसे कहेंगे ईहा रूप मतिज्ञान अब मुनिराज जो भी किसीके मन की बात जानेंगे इसे कहेंगे मनःपर्यय ज्ञान।

यहाँ पर इससे स्पष्ट होता है कि मनःपर्यय ज्ञान के लिए दर्शनोपयोग की आवश्यकता नही।

वास्तव में दर्शनोपयोग का काल बहुत सूक्ष्म सामान्य छद्मस्त जीव पकड़ ही नही सकता कि कोनसे समय दर्शनोपयोग है कोनसे समय ज्ञानोपयोग है।जो पकड़ नही सकते उसे तर्क और अनुमान से ही समजना होगा।प्रत्यक्ष ख्याल में आना मुश्किल है।

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