21वी शताब्दी का धर्म
लेखक - मुजफ्फर हुसैन
[ एक मुस्लिम चिन्तक की द्रष्टि से जैन धर्मं का महात्म्य और उसमे निहित असीम संभावनाए ]
—> 21वी शताब्दी का धर्मं ‘जैन धर्मं’ होगा ! इसकी कल्पना किसी सामान्य आदमी ने नहीं की है, बल्कि ‘बनार्ड शो’ ने कहा कि यही मेरा दूसरा जन्म हो तो मैं जैन धर्मं में पैदा होना चाहता हूँ, ये बात स्वयं ‘बनार्ड शो’ ने गाँधी जी के पुत्र देवदास गाँधी से कही थी !
—> रेवेरेंड तो यहाँ तक कहते है कि दुनिया का पहला मजहब जैन था और अंतिम मजहब भी जैन होगा !
—> बाल्टीमोर [USA] के दार्शिनिक डॉक्टर मोराइस का कहना है कि यही जैन धर्म को दुनिया ने अपनाया होता तो यह दुनिया बड़ी खुबसूरत होती !
—> जस्टिस रानाडे ने कहा कि ऋषभदेव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर, ये चार तीर्थंकर नहीं बल्कि जीवन और चिंतन कि चार दिशाए है !
ऐसा जैन धर्मं में क्या है ? जैन धर्मं सिर्फ धर्म नहीं, जीवन जीने का दर्शन है, सरल भाषा में कहू तो यह खुला विश्वविद्यालय है ! आपको जीवन का जो पहलु चाहिए वो यहाँ मिल जायेगा ! दर्शन ही नहीं बल्कि संस्कृति, कला, संगीत और भाषा का यह संगम है ! जैन तीर्थंकरो ने संस्कृत को न अपनाकर जनभाषा प्राकृत को अपनाया, क्योकि वे जैनदर्शन को विद्वानों तक सीमित नहीं रखना चाहते थे ! वह तो सामान्य आदमी तक पहुचे और उसके जीवन का कल्याण करे, यह चिंतन था !
दुनिया के सभी धर्मो ने अपने चिन्ह किये, इनमे कुछ हथियार के रूप में, तो कुछ आकाश में चमकने वाले चाँद और सूरज के रूप में ! 24 तीर्थंकरो में एक भी ऐसा नहीं दिखलाई पड़ता जिसके पास धनुष-बाण हो या फिर गदा अथवा त्रिशूल हो ! हथियारों से लेस दुनिया के रजा अपनी शानो-शोकत से अपना दबदबा बनाये रखने में अपनी महानता समझते थे, लेकिन यहाँ तो भोले-भाले पशु-पक्षी अथवा जलचर प्राणी उनके साथ है, उनका कहना था हम साथ साथ जियेंगे और इस दुनिया को हथियार रहित बनायेंगे ! इन्सान ने सुविधा के लिए घोड़े, हाथी, गरुड़, मोर और न जाने किन किन प्राणियों को अपनी सवारी बना ली ! लेकिन जैन तीर्थंकर तो किसी को कष्ट नहीं देना चाहता है, वे अपने पाँव के बल पर साड़ी दुनिया को उगालते है और प्रकृति के भीड़ को जानने कि कोशिश करते है ! रहने को घर नहीं, खाने कोई स्थायी व्यवस्था नहीं, लेकिन दुनिया के कष्टों का निवारण करने के लिए अपनी साधना में कमी नहीं आने देते !
दुनिया में असंख्य वाद है, जो भिन्न भिन्न विचारधारा पर अपना चिंतन करते है, ये विचार से समाज बनाते है, लेकिन जैन धर्मं समाज को व्यक्ति में देखता है, हर वाद ने व्यक्ति को छोटा कर दिया, लेकिन हम देखते है जैन विचार ने मनुष्य को सबसे महान बना दिया, किसी भी हालत में वह व्यक्ति की गुण और उसके सामर्थ्य को समाप्त नहीं होने देता, दुनिया के अन्य धर्म मनुष्य को सामाजिक प्राणी बनाकर उसे जीवन यापन करने केलिए लाचार बना देते है, लेकिन यहाँ तो मनुष्य को अपनी स्वतंत्रता सर्वोपरि है, वास्तव में तो यही स्थिति उसे ‘अहं ब्रह्मास्मि’ की ऊचाईयो तक पहुचाती है, आदमी से समाज बने तो क्या बड़ी बात है, इंसान को वह भगवान् ही नहीं, बल्कि इस समस्त दुनिया का रचयिता बनाने की बात करता है, इंसान का बनाया कंप्यूटर अपग्रेड हो सकता है तो फिर इंसान क्यों नहीं ? चाँद-सितारों को छुने वाला इंसान जब भगवान् बन जायेगा तो फिर क्या उस समय अपनी सीमा में उसे बाँध सकेगा ? वह 21वी शताब्दी की नहीं बल्कि इस अजर और अमर दुनिया का प्रणेता बन जायेगा !
आज हिंसा के प्रतिक है - ओसामा, ओबामा और अमेरिका ! इन तीनो ‘अ’ को पराजित करने वाला है जैन दर्शन अपनी झोली में एक संजीवनी को संजोये हुए है जिसका नाम है अहिंसा, अनेकान्तवाद और अपरिग्रह ! तीनो एक-दुसरे से जुड़े हुए हिया, ये अलग नहीं हो सकते, चन्द्रगुप्त, अशोक और हर्षवर्धन उस खून-खराबे को नहीं देख सके इसलिए तो फिर उन्होंने कसम खाई की वे अब युद्ध नहीं करेंगे ! रावण से युद्ध करने वाले राम ने कहा, अ अयुद्ध चाहिए और अयोध्या को बसा लिया ! एक क्षत्रिय कहता है अब वध नहीं होगा तभी तो उसका सामाज्य अवध के नाम से प्रसिद्ध हो गया, हर लड़ाई के बाद इंसान शांति की तलाश में चलने को मजबूर हो गया ! पहला विश्व युद्ध समाप्त हुआ तो ईसा के मानने वालो ने लीग लोग नेशन बनायीं ! लेकिन फिर भी द्वितीय विश्वयुद्ध की महाज्वाला भड़की को राष्ट्रसंघ बन गया ! हर युद्ध के बाद अयुद्ध और हर हिंसा के बाद अहिंसा, यह इंसान की खोज रही है ! एटम बम डालने वाले जनरल इश्वर को पता लगा कि हिरोशिमा और नागासाकी में क्या किया, तब उसे भारत कि याद आई और अपनी माँ से कहने लगा - मुझे कोई श्वेत वस्त्रधारी महाराज के पास ले चल, मुझे वहा शांति मिलेगी क्योंकि उसने पढ़ा था कि भारत को न जेट सकने वाला सिकंदर जब लोट
[18/06 9:42 am] शैलेन्द्र शाह जैन उज्जैन: रहा था तो उसे एक जैन साधू ने कहा था: “दुनिया को जीतने वाले काश !! तुम अपने आपको जीत सकते !” जैन साधू को सिकंदर अपने साथ ले गया ! जैन साधू सिकंदर के बाद में एंथैस में वर्सो तक लोगो को अहिंसा का सन्देश देता रहा ! एंथैस से सब कुछ बदल गया, लेकिन आज भी वहा जैन साधू कि प्रतिमा लगी हुई है, प्लेटो और एरिस्टोटल का एंथैस इतना प्रभावित हुआ कि “पैथागोरस जैसा गणितज्ञ कहने लगा कि मैं जैन हो गया हूँ !”
21वी शताब्दी पानी के संकट कि शताब्दी है ! जैन मुनि तो कम पानी पीकर अपना काम चला लेते है, लेकिन हम जैन लोग क्या करेंगे ? उसका मूल मन्त्र है शाकाहार जो शांति, क्रांति हार्द और रक्षा को परिभाषित करता है ! मांसाहार के लिए हाईब्रिड बकरे, डुक्कर और मुर्गिया पैदा कि जा रही है ! इन कृत्रिम पधुओ पर अध्ययन करे तो एक बकरी का बचा यदि एक केलो है तो उसे दो किलो बनाने में 5,000 गैलन पानी लगता, लेकिन एक किलो टमाटर को पैदा करने केलिए चाहिए सिर्फ 160 लीटर पानी ! भारी जल संकट के समय आप क्या करेंगे ?
भूकंप, ज्वालामुखी और सुनामी अब हमारे भाग्य बन गए है ! जानवरों के क़त्ल के कारन यह विपदाए आती है ! यदि विश्वास न आये तो ‘बिसालॉजी’ का अध्ययन जरुर कीजिये, जिसका अर्थ वह ज्ञान-शाखा है, जो breakdown of integrate system - समन्वित व्यवस्थाओ के विभाग अर्थात टूटने के कारन कि खोज करती है ! बीस सिद्धांत पहले डॉक्टर बजाज, इब्राहिम और सिंह के प्रथम रोमन अक्षरों से बना एक संक्षिप्त शब्द था, किन्तु अब यह एक नयी विज्ञान शाखा के रूप में विकसित हो गया है, एक संकट से उबारने वाला धर्मं ही केवल 21वी शताब्दी का धर्मं बन सकता है !
6 अरब की यह दुनिया कहा जाकर रुकेगी ? साधन और स्त्रोत कम होंगे तो फिर टकराव अवश्य होगा ! क्या ब्रम्हचर्य इसका उपाय नहीं है ? मोक्ष चाहते हो तो मौत और जीवन के चक्कर से निकलो ! स्वयं ऐसा करना चाहते हो तो फिर दुसरो को जन्म देकर उसके सिर पर पाप की गठरी क्यों रखना चाहते हो ?
21वी शताब्दी में नारी स्वतंत्रता की बात कही जाती है ! जैन धर्मं में झांककर देखो तो यहाँ साध्वियो को कितना बड़ा सम्मान मिला है ! वे पूजनीय है ! धर्मं को पढ़ाती और सिखलाती है ! ईसाइयो में मोरियम के बेटियों के साथ क्या किया ? तलाक, तलाक और तलाक - यह कानो को फाड़ देते है ! दासी और भोगिनी को साध्वी बना देने का चमत्कार केवल जैन धर्मं में किया है ! समानता और स्वतंत्रता के साथ उनका स्वाभिमान स्थापित किया है !
20वी सदी ने अणु को तोडा, परमाणु ने चमत्कार किया ! उसने उर्जा का पुंज एटम बम तैयार हो गया ! जैन धर्मं का भेद-विज्ञान आत्मा और शरीर को अलग कर देने वाला बहुत पुराना विज्ञान है ! आत्मा ही तो एटम है जो समस्त दुनिया में शक्ति का संचार करती है !
भारतीय दर्शन में ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की कल्पना की गयी है, जिसका आधार सहअस्तित्व है ! इसे सर्वधर्म-समभाव की संज्ञा भी दी जाती है ! लेकिन आज तक यह शब्दावली केवल राजनीति के दाएरे में ही प्रस्तुत की गयी है ! यदि आप अध्यात्म के आधार पर इसका विचार करते है तो फिर आपको जैन दर्शन की और लोटना पड़ेगा ! नागरिकता और राष्ट्रीयता एक दिनों हर देश में मानव का आधार है, लेकिन जब तक समानता और स्वतंत्रता नहीं मिलती, ये शब्द खोखले मालुम पड़ते है ! मनुष्य के कष्टों की निवारण और अंतर्राष्ट्रीय आधार पर उसका उधार केवल और केवल, जैन दर्शन में माध्यम से ही संभव है !..