निगोद जीवो में मति श्रुत ज्ञान का स्वरूप?
निगोद जीवों में कर्म बंध किस प्रकार होता है?
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मोक्षमार्ग प्रकाशक के तीसरे अध्याय में “एकेंद्रिय जीवों के दुःख” section में ये सब वर्णन है।
निगोद सम्बन्धी निर्देश - निगोद निर्देश - जैनकोष
निगोद जीवों में मति-श्रुत ज्ञान -
निगोदिया आदि असंज्ञी पंचेंद्रीय पर्यन्त जीवों में उपचार से श्रुतज्ञान स्वीकार किया गया है। मतिज्ञान तो उनके पास है ही। पूर्व संस्कारों से मोह, श्वासोच्छवास, शरीर और इन्द्रियों का कार्य चलता रहता है।
निगोदिया में कर्मबन्धन -
अल्प ज्ञान और अल्प योग होने से कम कर्मों का आस्रव बंध होता है अतः हीन अवस्थाएं ही प्राप्त होती हैं। एकेंद्रिय जीव अनेक भवों में पुण्यार्जन कर अधिकतम असंज्ञी पंचेंद्रिय की पर्याय प्राप्त कर सकता है। (इसमें निगोद विशेष की जानकारी नहीं है मेरे पास)
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