आयु कर्म + गति + उत्कर्षण अपकर्षण

आयु में उत्कर्षण-अपकर्षण संबंधी क्या व्यवस्था है ?
किस आयु में क्या हो सकता है ? गति अपेक्षा व भुज्यमान - बध्यमान अपेक्षा ?
और आयु उत्कर्षण-अपकर्षण होने का कारण बताएँ ।

गति बंध व आयु बंध में क्या अंतर है ?
किसका बंध पहले होता है ?

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जीव की किसी विवक्षित शरीर में टिके रहने की अवधि का नाम ही आयु है। इस आयु का निमित्त-कर्म आयुकर्म चार प्रकार का है, पर गति में और आयु में अंतर है । गति जीव को हर समय बँधती है, पर आयु बंध के योग्य सारे जीवन में केवल आठ अवसर आते हैं जिन्हें अपकर्ष कहते हैं । जिस आयु का उदय आता है उसी गति का उदय आता है, अन्य गति नामक कर्म भी उसी रूप से संक्रमण द्वारा अपना फल देते हैं । आयुकर्म दो प्रकार से जाना जाता है - भुज्यमान व बध्यमान । वर्तमान भव में जिसका उदय आ रहा है वह भुज्यमान है और इसी में जो अगले भव की आयु बँधी है सो बध्यमान है ।

आयुके उत्कर्षण अपवर्तन संबंधी नियम

  1. बद्ध्यमान व भुज्यमान दोनों आयुओंको अपवर्तन संभव है

मूल मे वर्तमान आयु में अपवर्तन(कदलीघात) सम्भव है अर्थात हम संक्लेश परिणाम करके इसी भव में हमारी आयु कम कर सकते हैं परंतु बढ़ा नहीं सकते।
और अगले भव की आयु में घटना-बढ़ना दोनों मरण के अंत समय तक भी हो सकता है।

  1. परभव के बद्ध्यमान आयु की उदीरणा नहीं होती है।
    अर्थात् अगले भव की आयु वर्तमान में उदय में नहीं आ सकती।

  2. उत्कृष्ट आयु के अनुभाग का अपवर्तन संभव है।

  3. असंख्यात वर्षायुष्कों तथा चरम शरीरियों की आयु का अपवर्तन नहीं होता।

  4. भुज्यमान आयु पर्यंत बद्ध्यमान आयु में बाधा असंभव है।

  5. चारों आयुओं का परस्पर में संक्रमण नहीं होता।

देवायु, मनुष्यायु आदि रूप नहीं होते। अर्थात् जिसकी आयु बन्ध गई उसी में ही जन्म लेना है इसमें उत्कर्षण अपकर्षण हो सकता है।

  1. संयम को विराधना से आयुका अपर्वतन हो जाता है।
    जैसे उत्कृष्ट आयुको बाँध करके मिथ्यात्व को प्राप्त हो, द्विपायन मुनि अग्निकुमार देवो में उत्पन्न हुए।

8 आयुके अनुभाग व स्थितिघात साथ-साथ होते हैं।
जैसे 7 वी नरक की स्थिति घटकर पहली नरक आवे तो अनुभाग भी इसी अनुसार कम होता है।

आयु के बन्ध संबंधित कुछ नियम

1 1. तिर्यचों की उत्कृष्ट आयु भोगभूमि, स्वयंभूरमण द्वीप, व कर्मभूमि के प्रथम चार कालों में ही संभव है।

  1. भोग भूमियों में भी आयु हीनाधिक हो सकती है।

3, 4 ,7 ,9= 3 rd 4th ,7 th और 9 th point विशेष विस्तार वाले हैं इसके लिए link से जान सकते हैं।
आयु - जैनकोष

5 ** 1. आयु के साथ वही गति प्रकृति बँधती है।

नोट-आयु के साथ गति का जो बंध होता है वह नियम से आयु के समान ही होता है। क्योंकि गति नामकर्म व आयुकर्मकी व्युच्छित्ति एक साथ ही होती है-

6 एक भवमें एक ही आयुका बंध संभव है।

8 बद्ध्यमान देवायुष्क का सम्यक्त्व विराधित नहीं होता।

10 मिश्र योगों में आयु का बंध संभव नहीं।

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