कु-अवधि ज्ञान से पूर्व कु-अवधि दर्शन क्यों नहीं?

अवधि ज्ञान के पूर्व जिस प्रकार अवधि दर्शन होता है, उसी प्रकार कु-अवधिज्ञान से पूर्व कु-अवधि दर्शन भी होना चाहिए था, ऐसा क्यों नहीं?
कु-अवधि ज्ञान प्रथम गुणस्थान में भी होता है, परन्तु भावदीपिका जी(क्षायोपशमिक दर्शन भाव अन्तराधिकार)
ग्रन्थ के अनुसार अवधि दर्शनावरण तीसरे मिश्र गुणस्थान से बारहवें गुणस्थान पर्यन्त बताया गया है, और आगे ही 25 कषायो
को भी सम्मिलित किया है, जिसमें अनन्तानुबन्धी कषाय भी आती है, जो प्रथम गुणस्थान में होती है…
कृपया स्पष्ट कीजिए ।

आचार्य अकलंकदेव द्वारा लिखित ‘न्यायविनिश्चय’ नामक ग्रंथ में उल्लेख मिलता है कि अवधि दर्शन प्रथम गुणस्थान से ही होता है, इसलिए प्रथम गुणस्थान से अवधि दर्शन पूर्वक ही अवधि ज्ञान होता है, परंतु बाकी सब सिद्धांत ग्रंथ जैसे गोम्मटसार जीवकाण्ड, लब्धिसार आदि ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि प्रथम 2 गुणस्थानों में कु- अवधि ज्ञान, मतिज्ञान व श्रुतज्ञान पूर्वक ही होता है।

4 Likes

दर्शन में सम्यक - मिथ्या का भेद नहीं होता। सम्यक दृष्टि तथा मिथ्या द्रष्टि का दर्शन (not श्रद्धा वाला दर्शन) समान होता है।

4 Likes