जातिस्मरण व अवधिज्ञान

जाति स्मरण और अवधिज्ञान में क्या अंतर है?
ये दोनों किस किसको हो सकते हैं? इनमे कितने भव का ज्ञान होता है? क्या दूसरे के भावों का भी ज्ञान इनमे होता है?
कुअवधिज्ञान और कुजातिस्मरण भी होता है क्या?

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जातिस्मरण ज्ञान मूल में मतिज्ञान का भेद है।
यह परोक्ष , अस्पष्ट, भऱमजनित ज्ञान भी हो सकता है।
इसमे मात्र भूतकाल सम्बन्धी ज्ञान होता है।यह ज्ञान में अस्पष्टता होती है क्योंकि परोक्ष है।

मिथ्यादृष्टि को कुजातिस्मरण होगा सम्यकदृष्टि को जातिस्मरण होगा।यह भेद श्रध्दा अपेक्षा सम्यक या मिथ्या होने से किया हुआ है।

यह ज्ञान उस भव में या अन्य भवो में भी इनका स्मरण हो सकता है। परंतु अन्य भवो में स्मरण के लिए उसका संज्ञी पना बना रहना आवश्यक है
जैसे कोई मनुष्य से असंज्ञी पंचेंद्रिय बना और बाद में संज्ञी तिर्यंच हुआ उसका स्मरण नष्ट हो जाता है। परंतु कई भवो तक भी यदि संज्ञी बना रहा तो स्मरण में आ सकता है।

अवधिज्ञान भूत वर्तमान भविष्य संबधी रूपी पदार्थों को द्रव्य,क्षेत्र,काल भाव की मर्यादा सहित प्रत्यक्ष स्पष्ट रूप से जानता है।
यहाँ भृम नही होता।

मिथ्यादृष्टि को कुअवधिज्ञान होता है जो कि नारकी और देवो में भवप्रत्यय अवधिज्ञान के रूप में होता है।
गुणप्रत्यय अवधिज्ञान सम्यकदृष्टि को ही होता है।

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प्रमाण?