ऐसा क्या करें कि आत्मा में राग का यह “ज़हरीला बीज” उत्पन ही न हो?

एक-एक शब्द कितना सही के किसी भी तरह की हिंसा का असल कारण तो “राग” है।
आत्मा में रागादि की उत्पत्ति नहीं होना उसका नाम अहिंसा है।

पहले आत्मा से फिर वाणी से फिर काय से।

तो ऐसा क्या करें कि आत्मा में राग का यह “ज़हरीला बीज” उत्पन ही न हो?

इस का हल तो बताया ही नहीं।