मैंने हाल ही में डॉ हुकमचंद जी भारिल:pray: को सुन ना शुरू किया है।
अभी तक उन्हें जितना भी सुना।
लगता है जैसे हर एक दिगम्बर जैनी को उनको सुनना चाहिए ताकि क्या मिथ्या और क्या सम्यक दोनों का भेद समझ सकें। समाज में अनादि से पता नहीं आगम की वाणी के नाम पर क्या ही समझाया जा रहा है।
रत्नत्रय का वास्तविक परिचय
लगता है जैसे आज के टाइम में जिनवाणी/आगम में लिखी बातों का वास्तविक अर्थ किसी ने समझा है तो इन्होंने समझा है।
मैं खुद को बहुत ब्लेस्ड मानती हूं के यूट्यूब के ज़रिए इनसे अवगत हुई।