समवदान किसे कहते हैं?

समवदान किसे कहते हैं? क्या स्वरूप है, स्पष्ट कीजिए।

षट्खंडागम 13/5,4/ सू.20/45 के अनुसार समवदान कर्म में सात प्रकार के, आठ प्रकार के और छह प्रकार के कर्म का भेदरूप से ग्रहण होता है
धवलाटीका में समुदान अथवा समवदान कर्म का उल्लेख हुआ है, जिसका. आशय है एक साथ 6,7 अथवा 8 कर्मोका बंधना
धवला 13/5,4,20/45/9
समयाविरोधेन समवदीयते खंडयत इति समवदानम्, समवदानमेव समवदानता। कम्मइयपोग्गलणं मिच्छत्तासंजम-जोग-कसाएहि अट्ठकम्मसरूवेण सत्तकम्मसरूवेण छकम्मसरूपेण वा भेदो समुदाणद त्ति वुत्तं होदि।
=[समवदान शब्द में ‘सम्’ और ‘अव’ उपसर्ग पूर्वक ‘दाप् लवने’ धातु है। जिसका व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है–] जो यथाविधि विभाजित किया जाता है वह समवदान कहलाता है। और समवदान ही समवदानता कहलाती है। कार्मण पुद्​गलों का मिथ्यात्व, असंयम, योग और कषाय के निमित्त से आठ कर्मरूप, सात कर्मरूप और छह कर्मरूप भेद करना समवदानता है, यह उक्त कथन का तात्पर्य है।