सुख/शांति - जीव का क्या लक्ष्य?

जैसा के मेरी अभी लगभग 2 महीनों से जैन दर्शन को जान ने व समझने की रुचि जगी है। तो इन दिनों रोज़ अधिकतर वक़्त इसी से संबंधित कुछ न कुछ देखती पढ़ती सुनती रहती हूं। घर के कार्यों के साथ-साथ।
तो बार बार एक बात सुन ने पढ़ने मिल रही है कि जीव आखिर चाहता क्या है तो यही जान ने मिला के जीव सुख चाहता है यानी जीव का अल्टीमेट goal सुख की प्राप्ति है।

पर मुझे हमेशा से पता नहीं क्यों ये महसूस होते रहा है कि- मैं आत्मा शांति की भूखी हूँ। मुझ आत्मा को हमेशा शांति की तलाश रहती है। सुख मिले न मिले शांति मिले।

अब मेरा आप सब गुणीजन से ये पूछना है कि क्या मैं किसी भ्रम में जीती आई हूं। I mean hamesha se maine… peace of mind ko he to soul ki chahat nahi samajh lia…पूछने का मतलब क्या ये दोनों अलग-अलग है?

आत्मा को सुख चाहिए और मन को शांति ! क्या ऐसा है?

मैं exactly क्या पूछना चाह रही हूँ। आशा करती हूं आप सब मेरे पूछने के भाव और तात्पर्य को समझ पा रहे है।:blush:

शान्ति या सुख की चाह में कोई अंतर नहीं। क्योंकि दोनों ही आत्मिक गुण है। किंतु मंद कषायरूप शांति और निर्विकल्प की शान्ति में जाति भेद है।

ऐसी भावना यह दिखाती है कि आपको सुख और शांति का अविनाभावि संबंध अभी भासता नहीं। सुख शांति सब का मिलना साथ मैं ही है। और ऐसा जानने से आत्मा की अधिक महिमा आती है।