व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध क्या है?

कृपया व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध को उदाहरण सहित समझाएं।

क्या ‘आत्मा- व्याप्य और ज्ञान- व्यापक’ यह सही उदाहरण है?

व्याप्य व्यापक में पूर्णतया फैलकर रहता है ।जैसे घडा वह व्यापक और मिट्टी उसमें व्याप्य ।
जो व्यापक के भी अवस्था और प्रदेशो मे होवें वह व्याप्य ।
द्रव्य व्यापक और त्रैकालिक गुण-पर्याय उसमें व्याप्य।
आत्मा वह व्यापक और ज्ञान उसमें व्याप्य
विशिष्ट अपेक्षा- गुणस्थान व्यापक और अशुद्ध पर्याय राग-द्वेषादि व्याप्य
:point_up_2:समयसार कर्ताकर्म अधिकार

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न्यायदीपिका में व्याप्य-व्यापक की परिभाषा देते हुए आचार्य ने लिखा है - “व्यप्तिक्रियां यः करोति सः व्यापकः , व्यप्ति क्रियायाः यः कर्मः सः व्याप्यः”
अर्थात व्यापने रूप क्रिया का जो कर्ता है वह व्यापक है जैसे - ज्ञान और जिसमें व्यापे वह व्याप्य जैसे- आत्मा।

व्यापक व्याप्य के आदि मध्य में अंत में अन्तरव्यापक होकर व्यापता है !

व्यापक - जो फैला हुआ है।
व्याप्य - जिसमें फैला हुआ है।

~ विपिन जी खड़ैरी

ऊपर के दोनों कथन में विरोध आ रहा है।

दृष्टांत:-

सिद्धान्त:-

ऊपर का द्रष्टान्त भी सिद्धांत से विरुद्ध है। क्योंकि मिट्टी द्रव्य है घड़ा पर्याय।

समयसार गाथा 75 में दिया है - “जैसे घड़े के और मिट्टी के व्याप्य-व्यापक-भाव के सद्भाव से कर्ता-कर्मपना है।”
यहां घड़े को व्याप्य और मिट्टी को व्यापक बताया है।

क्योंकि

क्रिया के कर्ता को व्यापक कहते हैं और क्रिया का कर्ता द्रव्य होता है।

और

कर्म व्याप्य होता है और कर्म पर्याय होती है।

यदि आप ज्ञान (गुण)को व्यापक ले रहे हैं तो ज्ञेयाकार पर्याय को व्याप्य लीजिये, आत्मा को नहीं।

विशेष:
कर्ता द्रव्य होता है कर्म पर्याय - इसीलिए एक वस्तु के षट्कारक द्रव्य-पर्याय से युक्त (6)षट्कारक पूरे होते हैं। केवल द्रव्य के षट्कारक या केवल पर्याय के षट्कारक सम्भव ही नहीं। वस्तु के षट्कारक सम्भव हैं।

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दो द्रव्यो मे व्याप्य व्यापक संबध नही होता है यह संबध द्रव्य तथा गुण का उनकी पर्याय के बीच होता है जेसे कुमार ओर घडे क बीच नही मिट्टी ओर घडे के बीच ही होता है जीव की ज्ञान पर्याय मे ज्ञान गुण व्यापक है जीव की क्रोधादि पर्याय मे चारित्र गुण का विभाव व्यापक है ओर क्रोध पर्याय व्याप्य द्रव्य के अनंत गुणो की उनकी निर्मल अथवा मलिन पर्यायो मे वो वो गुण ही व्यापक है द्रव्य गुणो का अखंड पीन्ड है ईस अपेक्षा पर्याय मे द्रव्य व्यापक है ऐसा कहाजाता है लेकिन अनंत गुणो कि उनकी स्वतंत्र पर्यायो मे वो वो गुण ही व्यापक है संपूर्ण द्रव्य नही ओर वो पर्याय तत्समय की योग्यतानुसार अपने स्वतंत्र षटकारको से ही होती है ऐसा द्रव्य का पर्याय स्वभाव है

क्योंकि आप का लिखना प्रश्न रूप नही इसलिए या तो मैं आपके वाक्यों का शास्त्र से निषेध करू या आप अपने वाक्यों का शास्त्र से आधार दे यह दो विकल्प है।

मैं आधार मांग रही हूं।

मिट्टी द्रव्य है, घड़े में व्यापक है। यह द्रष्टात शास्त्र में है तो क्या यह कथन मात्र है? आपका स्वयं का भी मिट्टी और घड़े का अनुभव होगा ना? क्या घड़े में मिट्टी नही व्याप्ति? मिट्टी घड़े में नही तो कहा व्याप्ति है? गुण में? और जब गुण पर्यय में व्यापे तब मिट्टी का क्या होता है? गुण में अपनी व्यापकता छोड़ देती है? या गुण में ही व्याप्त रहती है? और यदि गुण में व्याप्त है और गुण पर्याय में तो द्रव्य पर्याय में नही व्यापा कैसे कहें? पर्याय में द्रव्य व्यापा वह कहना कथन मात्र ही कैसे रहा? आप द्रव्य को गुण में और गुण को पर्याय में व्यापता हुआ ऐसे कह रहे है कि जैसे एक डब्बे में दुसरा डब्बा और वह दूसरा तीसरे डब्बे में हो। ऐसा तो वस्तु स्वरूप नही। क्योंकि हम निश्चय से व्याप्य व्यापकता एक द्रव्य में दिखा रहे है ना। कृपया मिट्टी द्रव्य घड़े पर्याय में नही व्यापी यह समझाइए।

और

द्रव्य पर्याय में व्यापक नही यह कथन शास्त्र में से दिखाइये।
द्रव्य से भिन्न पर्याय के षट्कारक भी शास्त्र में घटित किये हुए दिखाइये।
शास्त्र अर्थात आचार्य लिखित गाथा टीका।

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