वर्तमान समय में भगवान की मूर्ति केश विहीन (बाल रहित) बनाने की जो प्रथा चल रही है जो कि कुंडलपुर पंचकल्याणक 2022 में मूर्तियों पर देखी गई वा अभी अतिशय क्षेत्र बीना जी बारह के शांतिप्रभु की प्रतिमा भी केशविहीन देखी गई,यह प्रथा जिसका पदार्पण समाज में हो चुका है,यह आगम सम्मत है,क्या जैन मूर्तिविज्ञान इन केश रहित मूर्तियों की प्राणप्रतिष्ठा की अनुमति देता है ,या यह मात्र पंथवाद का तुष्टिकरण है।कृपया आगम सम्मत प्रमाण प्रस्तुत करें।
जय जिनेन्द्र ।।
तर्क से विचार करे तो दोनों ही उचित है।
केश सहित तो सम्मत है ही।
केश रहित में यदि कोई मुनिराज केशलोंच करके ध्यानस्थ अवस्था मे बैठे और केवलज्ञान प्रगट हो जाये तो इसमें क्या दोष?
इसी कारण यदि कोई लम्बे जटा वाली बनाये या बिना केश दोनो में कोई दोष ख्याल में नही आ रहा