मंदिर में जो प्रतिमा विराजमान वे अरिहंत या सिद्ध परमेष्ठी?

मंदिर में जो देव वह उनकी अरिहंत अवस्था या सिद्ध अवस्था की होती है? मतलब हम मोक्ष की कामना अरिहंत परमेष्ठि से या सिद्ध परमेष्ठि से करते है?

जय जिनेंद्र,
(आपके प्रश्न के आशय के अनुसार) मन्दिर में जो प्रतिमा की हम पूजन करते हैं, वह अरहन्त अवस्था की है…

  1. सिद्ध प्रतिमा के लक्षण जिनागम में अलग-अलग बताएं हैं जोकि है अष्ट प्रातिहार्य से रहित, और हम जो सामान्यतः मन्दिर में प्रतिमा विराजमान करते हैं वह अष्ट प्रातिहार्य से युक्त होती है।

  2. सिद्धों की दिव्यध्वनि नही, उपदेश नही, ये तो अरहन्त अवस्था में होता है और हम मन्दिर क्यों गए - उनके जैसा बनने - कैसे बने? - उन्होंने ही मार्ग बताया - तो जिसने बताया उसी की तो पूजा करेंगे। (Basic thing)

वास्तव में तो कामना होती ही नही… परन्तु फिर भी मोक्ष की इच्छा हम तो पंच परमेष्ठी से करतें हैं। न अरहन्त विशेष से, न सिद्ध विशेष से।

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चर्चा संग्रह (पृष्ठ 8) के इस अंश को पढ़कर भी शंका का समाधान हो सकता है।

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