आत्मा का स्वरूप

एक शरीर छोड़ने के बाद क्या आत्मा तुरंत दूसरा शरीर धारण कर लेती है?

जी हां
जघन्य 1 समय
उत्कृष्ट 3 समय के अंदर आत्मा अन्य शरीर धारणकर लेती है। इसीको विग्रह गति कहते है।

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विग्रह गति वाले शीर्षक को विस्तार देने की कृपा कीजिए ताकि और स्पष्ट हो यह विषय।

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विग्रह अर्थात शरीर
विग्रहगति का अर्थ है पूर्वभव के शरीर को छोड़कर उत्तरभव ग्रहण करने के अर्थ गमन करना।

ये (विग्रह) गतियाँ चार हैं–इषुगति, पाणिमुक्ता, लांगलिका और गोमूत्रिका। इषुगति विग्रहरहित है और शेष विग्रहसहित होती हैं। सरल अर्थात् धनुष से छूटे हुए बाण के समान मोड़ारहित गति को इषुगति कहते हैं।
इस गति में एक समय लगता है।

जैसे हाथ से तिरछे फेंके गये द्रव्य की एक मोड़ेवाली गति होती है, उसी प्रकार संसारी जीवों के एक मोड़ेवाली गति को पाणिमुक्ता गति कहते हैं। यह गति दो समयवाली होती है। जैसे हल में दो मोड़े होते हैं,

उसी प्रकार दो मोड़ेवाली गति को लांगलिका गति कहते हैं। यह गति तीन समयवाली होती है।

जैसे गाय का चलते समय मूत्र का करना अनेक मोड़ों वाला होता है, उसी प्रकार तीन मोड़ेवाली गति को गोमूत्रिका गति कहते हैं। यह गति चार समयवाली होती है। ( धवला 1/1, 1, 60/299/9 ); ( धवला 4/1, 3, 2/29/7 );

https://www.jainkosh.org/wiki/विग्रहगति

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