मंदिरजी में घंटा क्यों रखा और बजाया जाता है ?कुछ कारण ऐसे भी सुनने को मिलते हैं, जैसे व्यंतरों को यह पता चल जाए की जैन श्रावक आएं है, तो उन्हें आड़ ना आए, तो वे देव सामने से हट जाए, और जैसे घंटा आदि शुभ संकेत होते हैं, इसीलिए रखा जाता है, और ऐसा भी सुनने को मिला है, की यह परंपरा, हिंदुओं से जैनियों ने अपनाई है।वास्तविक कारण क्या है, कृपया प्रकाश डालें।
उक्त प्रश्न का उत्तर मुझे इस माध्यम द्वारा प्राप्त हुआ है, जो की इस प्रकार है :–
अन्य और भी प्रमाण सादर आमंत्रित है।
कृपया इसकी संछिप्त summary भी पोस्ट करें |
ऊँची और गंभीर ध्वनि वाला एक वाद्य । कल्पवासी और ज्योतिष्क, व्यंतर और भवनवासी देव भी इसे मांगलिक अवसरों पर बजाते हैं । - महापुराण 13-13
https://www.jainkosh.org/wiki/घंटा
There is no prayer without music. There are three kinds of instruments - string, thumping and gonging. सितार, ढोलक और घंटा इसके उदाहरण हैं।
रही बात घंटनाद से होने वाले अन्य विशेष कार्यों की तो जैसा कि सदासुख दास जी कहते हैं उनके होने में कोई बाधा नहीं है। एक कार्य के अनेक कारण होते हैं कुछ सीधे-सीधे सम्बन्धित होते हैं और कुछ अन्य कारणों के सम्पर्क से।
आदरणीय संयम भैया द्वारा बहुत ही सुंदर एवम संक्षिप्त समाधान प्रस्तुत किया गया है और साथ ही, और जो भी हमारे पास प्रमाण उपलब्ध हुए, उनका संक्षिप्ति करण कुछ इस प्रकार है :–
१. प्रमाण: रत्नकरंड श्रावकाचार पृष्ठ क्र.२०८, २०९,२१० व २१२
अकृत्रिम जिन चैत्यालयों की रचना के सन्दर्भ में, त्रिलोकसार जी ग्रंथ के अनुसार पंडित सदासुखदास जी बतलाते हैं, की अकृत्रिम जिनालयों के गर्भगृह के बाहर मीठे झन झन शब्द करती मोती व मणियों से बनी छोटी छोटी घंटियां, व अनेक घंटों के समूह अनेक प्रकार की रचना सहित शोभित हो रहे हैं। तथा मुखमंडप व ध्वजापीठ की रचना के संदर्भ में भी, तोरण व घंटे आदि की समूह रचना का अति सुंदर वर्णन हमे प्राप्त है।
तथा पृष्ठ २१२ में पंडित जी जिनमंदिर में छत्र, चमर,सिंहासन, कलश, घंटा, आदि को अपनी सामर्थ्य अनुसार लगाकर, जिनमंदिर की वैयावृत्ति की प्रेरणा भी देते हैं।
२.प्रमाण:“मंदिर”–स्वतंत्र रचना, में घंटा को ‘मंगल ध्वनि’ के रूप में बजाया जाता है, व इसकी ध्वनि के द्वारा दूर के लोगों को मंदिर का स्मरण होता है, व हमारे भाव तीर्थ क्षेत्रों की वंदना स्तुति रूप होवे,इसमें घंटे की ध्वनि को निमित्त बताया।साथ ही साथ ये हमारे मानसिक प्रदूषण को भी दूर करती है,हमारा चित्त निर्मल होता है, इस प्रकार अनेक प्रकार से घंटे की ध्वनि को यह निमित्त बताया गया है।
३. महापुराण १३–१३– घंटा ऊँची और गंभीर ध्वनि वाला एक वाद्य । कल्पवासी और ज्योतिष्क, व्यंतर और भवनवासी देव भी इसे मांगलिक अवसरों पर बजाते हैं ।
४. जिन मंदिर निर्देशिका–आ० ब्र० पं० रवीन्द्र जी आत्मन् द्वारा विरचित, उसमें जिन मंदिर व्यवहार बताते हुए, वे बतलाते हैं, की अगर मंदिर में प्रवचन, सामूहिक पूजन, भक्ति आदि चलते हो, तो घंटा ना बजावे, जिससे किसी को अंतराय ना आवे।
इस प्रकार मंदिर जी में घंटा रखने और बजाने का प्रयोजन बतलाते हैं।