गुणस्थान सम्बन्धी विशेष

  1. तीर्थंकर प्रकृति और आहारक ऋद्धि धारी जीवों को दूसरा गुणस्थान क्यों नहीं होता?
  2. तीसरे गुणस्थान में मरण नहीं होता, तो क्या आयु बन्ध भी नहीं होता?
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  1. मूल में क्षयोप्शमिक सम्यकदृष्टि दूसरा गुणस्थान नही होता।

क्योंकि उनको अनन्तानुबन्धी की विसंयोजना होती है ।
तीर्थंकर प्रकृति या आहर्कद्विक वाले या तो क्षयोप्शमिक या क्षायिक हो सकते है।

गोम्मटसार कर्मकांड गाथा 92 में स्पष्ट उल्लेख 3 सरे में आयुबन्ध नही होगा।

मेरी समझ से ये उत्तर अव्याप्त है, लेकिन

ये बात बिल्कुल सही प्रतीत होती है। इसका प्रमाण कोई मिल जाता तो बहुत ही अच्छा होता।

क्या मिश्र गुणस्थान में होने वाली अनिर्णीत मिश्र श्रद्धा ही आयुबन्ध न होने का कारण है या और कुछ?

धवला 6/1, 9-8, 14/288/6
जो वेदगसम्माइट्ठी जीवो सो ताव पुव्वमेव अणंताणुबंधी विसंजोएदि।

जो वेदक सम्यग्दृष्टि जीव है वह पूर्व में ही अनंतानुबंधी चतुष्टय का विसंयोजन करता है।

ऐसा कथन तो पढ़ने में नही आया ,परंतु इस मान भी लेते है तो यह प्रशं उठता है कि 8 वे और उसके आगे आयु का बन्ध क्यो नही होता
मूल कारण यह भासित होता है कि उस गुणस्थान में लेश्या के मध्यम अंश जो आयु बन्ध के लिए होने चाहिए ऐसे नही होते ।

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