क्या कार्मण शरीर एक स्कन्ध है जिसमें से कुछ कर्मों का उदय होने से वे उस स्कन्ध से छूट जाते है और नए कर्म उसी स्कन्ध में जुड़ते-बंधते जाते है?
कोई शास्त्र आधार हो तो कृपा कर बताइयेगा।
क्या कार्मण शरीर एक स्कन्ध है जिसमें से कुछ कर्मों का उदय होने से वे उस स्कन्ध से छूट जाते है और नए कर्म उसी स्कन्ध में जुड़ते-बंधते जाते है?
कोई शास्त्र आधार हो तो कृपा कर बताइयेगा।
सिद्धाणंतिमभागं,अभव्वसिद्धादणंतगुणमेव।
समयपबद्धं बंधदि,जोगवसादो दु विसरित्थं ।।4।।
- गोम्मटसार कर्मकाण्ड