गुण प्रत्यय अवधिज्ञान के 2 भेद अनुगामी तथा अननुगामी के भी 2 प्रभेदों में उनकी क्षेत्र सम्बन्धी मर्यादा को स्पष्ट किया है।
अवधिज्ञान की परिभाषा वाली मर्यादा (जो द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की मर्यादा लिए ज्ञान होता है) तथा अननुगामी अवधिज्ञान की मर्यादा (जिस क्षेत्र में प्रगट हुआ, उसके बाहर नहीं जा सकता) दोनों एक ही हैं या अलग अलग?
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अवधिज्ञान में तत्संबधी ज्ञान की सामान्य परिभाषा बताई है। बाकी के ये सभी उसके जो भेद कहे हैं वे उसका विस्तार हैं ।
वहाँ परिभाषा में तो सामान्य से द्रव्य क्षेत्र आदि की अपेक्षा कथन है।
अनुगामी- जो अवधिज्ञान आने स्वामी जीव के साथ जाए उसे अनुगामी अवधिज्ञान कहते हैं।
अनुगामी आदि के उत्तर भेदों में उस सबकी कैसी भिन्न भिन्न विशेषता है यह बताया है।
जैसे कि क्षेत्रानुगामी अवधिज्ञान में जो अपने स्वामी के साथ दूसरे क्षेत्र में जाये उसको क्षेत्रानुगामी कहते हैं।
अब आवधिज्ञान सामान्य ओर अननुगामी में तो कोई मेल ही नही है। क्योंकि एक मे परिभाषा है और एक मे उस ज्ञान की प्रजाति का वर्णन।
तो इनमें मेल बिठाने का क्या औचित्य है???
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इसी संदर्भ में दूसरा प्रश्न है -
अनुगामी अवधि ज्ञान अगले भव तक भी जा सकता है। सो कोई अवधि ज्ञानी मनुष्य जिसका अवधि ज्ञान अनुगामी था, वह जब देव पर्याय को प्राप्त हो, तब जो अवधि ज्ञान है उसे भव प्रत्यय कहें या गुण प्रत्यय?
अथवा क्या भव प्रत्यय अवधि ज्ञान में भी क्षयोपशम से होनेवाले 6 भेद घटित हो सकते है?