प्रवचनसार गाथा १०१: ध्रुव और ध्रौव्य

यहां ऐसा नही समझना

ध्रौव्य पर्याय का अंश है,वह पर्याय किसकी ?उत्तर - ध्रुव की

जैसे ज्ञान में मति -श्रुत का व्यय और केवलज्ञान का उत्पाद हुआ परंतु जो ज्ञान गुणदोनो अवस्था मे बना रहा वह कोई भी अवस्था मे बना रहा उसे पर्याय में स्थायी भाव कहेंगे।

प्रमाण = ध्रुव + पर्याय
पर्याय के तीन अंश = उत्पाद ,व्यय, ध्रौव्य इसमे ध्रौव्य में ध्रुव को गर्भित कर लिया।अर्थात ध्रुवपने को किसी अपेक्षा से ध्रुव कह दिया।

जी हाँ बिल्कुल सही समजा

विशेष- सिद्धांतप्रवेशिका के आधार से

ध्रौव्य - प्रत्यभि ज्ञान के कारणभूत द्रव्य की अवस्था की नित्यता को ध्रौव्य कहते है।

यहां पर
द्रव्य की अवस्था = ध्रुव
नित्यता को ध्रौव्य = पर्याय की अपेक्षा
अर्थात यह वही है जो निगोद में,जो सिद्ध में वही मुजमे है इसका कभी नाश नही हो सकता में तो अनादि अनंत हु।

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