नमोस्तु क्या मात्र भगवान और १०८ लगे दिगम्बर मुनिराजों को ही बोल सकते हैं या अन्य किसी और को भी संस्कृत एवं जैनागम की दृष्टि से इस पर प्रकाश डालें।
कुंदकुन्द स्वामी ने दर्शन पाहुड की 28 मि गाथा में मुनिराज को वन्दामि कहा और प्रवचन सार की टीका में जयसेन आचार्य ने वन्दामि अरहंत भगवान को कहा इससे स्पष्ट होता है कि - नमोस्तु, नमस्कार, वन्दामि, नमोत्थु आदि सर्वनाम है।ये केवल पांच परमेष्ठी को ही कर सकते है।
सूत्र पाहुड की 13 और 14 वी गाथा 11 वी प्रतिमा धारी को इच्छामि ( संस्कृत) इच्छाकार ( हिंदी)
आयिका माता को भी इच्छाकार या इच्छामि कह सकते है।
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