चटाई को शुद्ध मानने का क्या कारण है?

काफी पुराने समय से जापादि के लिए घरों में, मंदिरों में चटाई पर बैठकर ही करने की परंपरा है आखिर चटाई पर ही क्यों क्या कुछ विशेष कारण है? अगर है तो कृपया बताएं एवं संभव हो तो इसका प्रमाण किस ग्रंथ में मिलता है वह भी प्रदर्शित कीजिए।

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चिटाई दो रूपों में हमारे सामने उपलब्ध है ।
प्रथम तो जो चटाई प्लास्टिक की होती है वह पूर्णता अशुद्ध मानी गई है क्योंकि उसकी उत्पत्ति मेें कई प्रकार के जीवो की हिंसा होती है एवं प्लास्टिक अपने आप में निंदनीय और निगिड अशुद्ध वस्तु है।
तथा रही बात सीखों(लकडी की सीखें) वाली चटाई की तो वह पूर्णता शुद्ध है कारण-

  1. वस्त्रों से यदि अपवित्र वस्तु स्पर्श हो जायें तो वह धुलने पर्यंत अपवित्र रहता है।किंतु चिटाई(सीखों वाली )से अपवित्र वस्तु का संसर्ग होने पर वह कुछ काल बाद(अंतर्मुहूर्त) पुनः शुद्ध हो जाती है।
  2. विविध प्रकार के वस्त्रों की उत्पत्ति में तज्जाति संबंधी बहुत हिंसा है किंतु चिटाई अचित्त काष्ठ-तृण आदि द्वारा निर्मित होती है अतः उसमें हिंसा नगण्य है।
    3)प्राचीन काल में भी आप देखें तो पाएंगे कि समाधि के आसन में निमित्त भूत तृण-चिटाई(संस्तर) आदि का प्रयोग मिल जावेगा।
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किसी ग्रन्थ आदि में अगर आया हो तो वह प्रस्तुत किया जा सकता है।

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चिटाई शब्द नया है; मुश्किल है कि- कहीं उपलब्ध होवें यह मुश्किल है किंतु फिर भी 150-200 वर्ष पहले के साहित्य में देखा जा सकता है लेकिन चटाई का रूप जो संस्तर है वह प्राचीन आगम में कई जगह देखने को मिल जाता है गृहस्थ अथवा मुनिराज की समाधि के समय उनको संस्तर(तृणादि द्वारा निर्मित) के ऊपर बैठाया- जाता है इत्यादि।

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:point_up_2:संस्तर

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कटस्य कर्त्ताहमिति सम्बन्धः स्याद् द्वयोर्द्वयोः ।
ध्यानं ध्येयं यदात्मैव सम्बन्धः कीदृशस्तदा ॥ २५ ॥-इष्टोपदेश
कटस्य=चिटाई का(शब्द प्रयोग)

समाधि और जप-तपादि के लिए चिटाई का प्रयोग होता था इसके पीछे एक मूल मुख्य कारण है और वह है-“प्रमाद का अभाव”

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