जिन जीवो के मन नही होता है उन जीवो के क्या इच्छा होती है?

जिन जीवो के मन नही होता है उन जीवो के क्या इच्छा होती है?

इच्छाएं तो होती हीं हैं किन्तु पूरी ना होने के कारण कषाय बनी रहती है।

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चीटी के मन नहीं होने पर भी गुण खाने कि इच्छा, मधुमक्खी के मन नहीं होने पर भी छत्ता बनाना फूल से रस निकालना आदि

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बिना मन के इच्छा कैसे हो सकती है

मन का कार्य इच्छा/ feelings/ कसाय होना न होने से नहीं है। मन का कार्य है दो वस्तु/परिस्थिति के बीच भले और बुरे की परख करना, निर्णय करना। Analytical Skills/ Decision Making Skills मन होने पर होती हैं, मन के आभाव में नहीं होती। इसलिए मन रहित जीव हित अहित का निर्यण नहीं कर सकता सो अपना आत्मकल्याण नहीं कर सकता।

जैसे बकरे को खुला छोड़ देने पर भी वह जान बचाके नहीं भागता क्यूंकि वह इतना analyze ही नहीं कर पाता की मुझे यहाँ मारने को रखा है जबकि गाय बैल slaughter house में प्रवेश ही नहीं करते, उन्हें मार मार कर वहां लेजाया जाता है।

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इच्छा मोह के निमित्त से उतपन्न होती है,मन से नही।

एकेन्द्रिय आदि को इष्ट अनिष्ट का जो भाव बनता है यह श्रुत ज्ञान के माध्यम से बनता है,जैसे चींटी को शक्कर और जाने का भाव बनता है ,

मन का कार्य = गुण और दोषों का विचार करता है,जैसे बच्चो को संस्कार देते है, उदपदेश दे कर मन वाले जीव को समजाया जाता है, बिना मन वाले उपदेश ग्रहण नही कर सकते।
*एवं और भी कई सारे बिंदु है जैसे अंतरंग ,बहिरंग तप है यह सब मन वाले जीव सोच समझकर कर सकते है।

पृथगुपकारानुपलंभात् तदभाव इति चेत्; न गुणदोषविचारादिदर्शनात्।31।

एवं पूर्व की बातों का स्मरण करना, बिना इन्द्रीय के वस्तुओ को भोगना त्याग और प्रायश्चित आदि के भाव

विशेष आप विचार करना…

@Chinmay जी आपने जो बकरे की बात कही बकरा संज्ञी पंचेन्द्रिय है वे सम्यक्त्व के अधिकारी है वे भी अणुव्रत तक का पालन कर सकते है।
मन का कार्य हित अहित न कहकर गुण या दोष यह कहना उचित हैक्योंकि हित अहित तो एकेन्द्रिय भी जान सकता है
गुण दोष का विचार करने में विशेष ज्ञान क्षयोपशम की आवश्यकता है।

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हित-अहित और गुण-दोष में क्या अंतर है?

ये कौनसे शास्त्र में से लिया है?

तत्त्वार्थवार्तिक

हित अहित - रात्रि में किसीको प्यास लगी और पानी मिले और पी जावे इसमे पानी हित रूप और प्यास अहित रूप है इतना समझता है।

गुण या दोष - प्यास लगी है,पानी मिल भी जावे परंतु यह विचार करे इसमे हिंसा दोष है वास्तव में मेरा स्वभाव ज्ञान, चैतन्य रूप पूर्ण यह मेरा गुण है प्यास तो शरीर मे है ऐसा विचार कर भेदज्ञान करे यह गुण दोष में आएगा।

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