मंदिर में प्रवेश करने से पहले मंदिर की दहरी, दहलीज (धेरी) पूजना या नहीं? कृपया इस पर प्रकाश डालिए।
पूजने में कोई दोष तो नज़र नहीं आता। जिनमंदिर भी हमारे नव देवताओं में से एक है और उसके प्रति बहुमान व्यक्त करने के लिए ऐसा करना गलत नहीं है।
जिसप्रकार जिन क्षेत्रों पर तीर्थंकर आदि के कल्याणक हुए हैं, कहने को तो वो मात्र एक स्थान ही है परंतु फिर भी हम उन क्षेत्रों की जयकार करते हैं बस इसीलिए कि हमारे पूज्य के कल्याणक इस स्थान से हुए इसलिए यह स्थान भी पूज्यता को प्राप्त हुआ। फिर जिनमंदिर में भी तो अरहंत प्रतिमा विराजमान है, क्या वह स्थान भी पूज्यता को प्राप्त नहीं हुआ?
दूसरी बात, 84 आशातना दोषों में मुख्यता सभी जिनमंदिर से संबंधित हैं (और न केवल वेदी के सामने या निकटता से संबंधित)। क्योंकि यह स्थान जिनेन्द्र भगवान का आलय है और इसका भी उतना ही सम्मान है जितना भगवान का।
Summary ― मंदिर की दहलीज पूजना एक बहुमान सूचक क्रिया है। उसमें कुछ दोष नहीं।
पूजना - इस शब्द का बहुत व्यापक अर्थ लगाना चाहिए।
पूज्य के प्रति भक्ति का, बहुमान का और आदर का भाव- उनके रख-रखाव का भाव उनकी सेवा करना आदि आदि सभी पूजने में ही आ जाएगा। (विनय के साथ विवेक और विवेक के साथ विनय का सामंजस्य भी ज़रूरी है।)
सभी के सभी नव देवता पूज्य हैं, परंतु उनकी पूज्यता का - उनके प्रति विनय का व्यवहार अलग अलग प्रकार से होता है। यथा- जिनवाणी की विनय में उनकी स्वाध्याय की मुख्यता है, जिन प्रतिमा की विनय उनके दर्शन पूजन प्रक्षाल आदि से प्रगट होती है… ऐसे और भी विचार किया जा सकता है।