विग्रह गति में प्राण

विग्रह गति में कितने प्राण होते हैं ?

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  1. विग्रह गति में तीन प्राण तो सबके रहते ही हैं (आयु, इंद्रिय – एक , कायबल – कार्मण/तैजस शरीर की अपेक्षा)
  1. पर्याप्तियां पूर्ण होते ही बाकी प्राण ( श्वासोच्छ्वास प्राण आदि) आ जाते हैं ।

पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

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धन्यवाद भैया।

एक आशंका यह है की क्या तैजस और कार्माण शरीर के कारण स्पर्शन इंद्रिय कही जा सकती है?

विग्रहगति में भाव इन्द्रिय की लब्धि होने पर भी द्रव्येन्द्रिय की रचना का अभाव होने से शब्दादि रूप पाँचों ही इन्द्रियों के विषयों के अनुभव का अभाव है दोनों ही शरीर इस कारण निरुपभोग कहलाते हैं।

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विग्रहगति में स्पर्श आदि भावइन्द्रिय होना सब है कार्माण शरीर का ही कार्य तैजस का नहीं

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१० प्राणों की चर्चा में - भाव और द्रव्य दोनों का साथ में होना ज़रूरी नहीं, अकेले भाव से भी प्राण संज्ञा प्राप्त होती है?

विग्रहगति में तो ऐसा ही है

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