शरीर हमारे अनुसार चले या हम उसे ठीक कर सके ऐसी अपेक्षा से तो दोनों ही कथनों से मिथ्यात्व दिखाई पड़ता है। लेकिन/-
सतर्कता में मिथ्यात्व नही होता और प्रमाद में मिथ्यात्व का प्रवेश हुए बिना नही रहता। (सामान्यतः)
यहाँ मिथ्यात्व से ज्यादा सतर्कता हावी है तो मिथ्यात्व इसमें ग्रहण ना ही करें क्योंकि ठीक होने के chances भी हैं और लोक की अपेक्षा ये राजमार्ग भी है।
यहाँ भी ठीक होने के chances हैं लेकिन यहाँ लोक की अपेक्षा प्रमाद की प्रवृत्ति है, ऐसे काम वे लोग करतें हैं जिन्हें ग्रहीत मिथ्यात्व की अधिकता हो तो यह उपाय योग्य ही नही।
• दोनों में व्यक्ति का ठीक होना उसके पूण्य पर आश्रित है।
• दोनों में ही शरीर को ठीक करने का प्रयत्न होने से मिथ्यात्व का समावेश हो सकता है।
• लेकिन यदि ज्ञानी सम्यकदृष्टि इनमें से एक विकल्प चुनेगा तो वह प्रथम में प्रथम दवाई का ही होगा।
• क्योंकि दवाई की अपेक्षा मन्त्र आदि में अंधभक्तता अधिक है।
ज्ञानियों का विचार